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महासति सिले कुन हास्य कीजड, तु जीविया कीचक नीर दीजइ मैत्ति बात पर ही सवि बाइ स्त्री तळे सवि हई जा' माई ।
नारि नीरस न शाणि न राचई अश्यहीन पति पद्म बंबइ (पद २६-२८) द्रौपदी के कारण कामुक कीचक की हुई स्थिति का आलंकारिक वर्णन देखिए:
भमरठ मरिवा अणबीहतर, पसरि पइ केतकिई हता कठिन कंटक को डि कटी रडइ, पडिउ बेधि पुरा पुणि भारढाइ गहाउ मेहि कीचक नीच थिउ मनिसु मन्मथ मार्गगण नेमिधिल भरति अंगि अनंग ती पणी, हृदय मा सुटकइ मुगलोयणी टलवलइ जिम निर्जल मछिली, वल वलइ अति अंग बली वली
मलाइ लामइ लावर पाकुर, विरहि विहवल वावर वाउला (३१) कामुक कीचक को पी पतिव्रता प्रौपदी ने बहुत समझाया। हर तरह से उसने अपने शरीर ब सतीत्व की रक्षा करना चाहा। अन्ततोगत्वा भीम ही स्वयं द्रौपदी बनकर चला गया और कीचक का वध किया। कवि की उपदेशात्मकता नी निवा और विविध उदाहरणों तथा दृष्टान्तों द्वारा किए हुए विविध वर्णन उल्लेखनीय :
मकरि कीचक कूड निकालिजा मरी बमू करि मूढ म जालिजा अक्ल अंबुधि माहिम कापदइ, मुडि इलाडल ल म बला वदन निम वानर वा पिणी काम पाहिसि मीलन मागिणी बदनि 'सिलं विसवेलिन टीड, गुण्ड पांच नसे नावि इंटियइ भरि मालनि जेम विरोलियइ तिन न केवकि केलि धोलिया खणड कापि न इंगर डोलिया, बडह का करी कुल गोलिया करि धरी धूबड़ धाइ बाइ, मादती दूपति बूंब पाडा चार घरामायक राशि राशि, ए पपीमा मईफल दासि दावि (४१) रोपवी रमपि भी मिनिवारी, दिक्षाडि पुषि जीपई तूं मारी काहि लोक करी असीगाठी आणि विकुन अनि शाला हुपदी गई गामि बिहार पगि मिसि कीचक आपइ