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गई है। यों बोली सब प्रकार के शास्त्रीय नियमों से बंधन सीमा नहीं रहती। प्रस्तुत कृति की वर्णन शैली से इस काव्य की जन भाववत विशेषताएं तथा पद माधुर्य स्पष्ट है। यह कृति ठीक वैसी ही सरस है जैसी अनुप्रासबद्ध गद्य रचना पृथ्वीचन्द्र चरित्र समस्त कृति १५वीं शताब्दी के उत्तरार्दूध का व्योरा प्रस्तुत करती है।
___ जहा तक रचना की कथा वस्तु का प्रेस है इसमें अदयावधि नेमिनाथ के जीवन सम्बन्धी उपलब्ध होने वाले काव्यों में कोई नवीनता नहीं है परन्तु कवि ने ओक वर्णनों में बड्डी मौलिकता प्रस्तुत की है। जिसका अर्थ गाम्भीर्यपद लालित्य, ली गत सौन्दर्य आदि रूपों में आगे के पृष्ठों में विवेचन किया जायगा।
कृति का प्रारम्भ कवि ने जीरापल्ली के पार्श्वनाथ और सरस्वती देवी का मंगलाचरण करके क्यिा है। कवि की शब्दावली, छंद वैविध्य तथा आलंकारिक अनुप्रासात्मक वर्णन पधति का परिचय प्रारम्भिक पति से ही मिल पाया है:
नम निरंजन विमल समाविहिं भाविहिं महिम निवास रे देव जीरापल्लि वाहिलय नवधन, विधन हरइ प्रा पासरे नामि-कमा ति कुंडलिनि निवसति, मरसति साच रूप रे समर सामिपि सुजिउ परंपर परमग्राम स्वरूप रे
परम ब्रहम स्वरूप, उप पुरापुर भूग, बधिमा बवियत ए, निम मिरमलय अगर अमर अनंत, भवर्मजन भगवत, जनमन रंजन ए, नम निरंजन ए अंगारित गिरिनार, गाइनु मे मिकमार, मार-विकारण्य, त्रिभुवन मारपुर
गबन शुरू मेहब, दीई परमार्षद, शिव सुखकारभए, मोह निवारण ए कवि का नेमिनाथ का बाळ वर्षन, ब ब्रह्मवारी स्वरूप, कृष्ण के धनुष का चलाना स बजावा आदि बनी खोस में उल्लेखनीय है:मंचन मैपिलमार स्पा हार,
बास ब्रहमचारी पन, स्वइ नारी ए - सारंग धनक घरे वि, स्वामी छ रेवि,