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ह ने मिश्वर चरित।
मणिक्य सुंदर मरि (सं० १४७०)
विक्रम की १५वीं शताब्दी में माणिक्य सुन्दर सूरि ने नैमिश्वर चरित काव्य की रचना की है। कवि श्री माणिक्य सुन्दर सूरि अचल ग के मेस्तुंग मूरि के शिष्य थे। माणिक्य सुन्दर सूरि ने इस कृति के साथ साथ और कई अन्ध लिखे है जिनमें चतुः पर्वीचम्पू, श्रीधर चरित (सं० १४६३) धर्मवन्त स्थानक, जुक राज क्या, मलय सुन्दरी कधा, संविभागवत क्या,सत्तर भेदी पूजा, गुणवमा चरित (t० १४८३) आदि क्था ऐन्ध संस्कृत में रचे है इसके अतिरिक्त अनेक टीकाएं भी लिखी है।' १५वीं शताब्दी में पृथ्वीचन्द्र चरित्र जैसा उत्कृष्ट गठ्य प्रन्थ लिखा है। पदय में कवि का यह चरित काव्य उपलब्ध है जो भाषा शैली और पद लालित्य की दृष्टि से बहुत उत्कृष्ट है।
कृति का रचना काल व रचनाकार कासमय दोनों ही स्पष्ट है तथा कवि का जीवन काल भी विस्तार में उपलब्ध है। रचना बहुत पडले गुजराती पाषा में प्रकाशित हुई थी परन्तु इसका पाठ कई अंओं पर अटित था, जो हिन्दी साहित्य के लिए अप्रकाशित सा ही है। वस्तुतः कृति प्राचीन राजस्थानी या जूनी गुजराती है। प्रति की प्रतिलिपि अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेर में सुरक्षित है। यों इसकी मूल प्रति पाटण के मंडार में, या दूसरी बम्बई के रायल एशियाटिक सोसायटी में डाक्टर पाई दाजी के चंग्रह में है।
रचना के नाम के बामे फाग बंध बबब मिलता है जो सम्भवतः काव्य के फागु औली में लिखे जाने का सूचक है। प्रस्तुत कृति जन भाग या बोली में लिखी
१० देगिय मात्माराम प्रसादी - मिश्वर चरित काम बंध वीर्षक : १-वाल्व नियक्ति अवीर, बाबायर्क विक्सि वीषिका, पिंड नियुक्ति दीपिका,
बोपनिकिताबीपिकापानका सिबी पिका, उत्तराध्ययन दीपिका, आचराग
दीपिका. पिंढ नियमित दीपिका.और मवतत्वं विचरण बादि। 1-जैन सर्वर कवियो।बीवाई चौडनलाल भाग २ पृ. ७७२) -भावानंद बादी galrst