________________
पाडिया पाहरिए, मनि चमकिउ हरि ए हारि उपरोधिई नेमि, तसु बालि सेमि,
सुरनर सवि मिली ए, जोइ मन रली र हेला हलावी बाह, हरि हीडोलइ नाह,
मल्ला -साडइ ए, बल देखाडइ २ (११-१२) प्रकृति वर्णन और वसत वर्णन के रूप में कवि का मन खून रमा है। अब्दो की सरलता ध्वन्यात्मकता, अनुप्रासात्मकता तथा कोमलकात सुषमा वर्णनीय है। राम कैद में वर्णित वसंत-गमन देखिए:
ईणि वरनि रही आम दीअला,
रितुवसत अवसर आइला, वाइला दक्षिण वाय तु जिन जिन कुसुमि मुभि भमरा रमणीया,
भयपराय हयवर इणहषीया, भूयपि भयु भडवाय तु (पद) यगिरि मिली रमल करतो गति
रमणी हीइधरंवो सले मास वसंतु जिन जिन ..... रमे रंग जावन भूपाला, शिवयमी साथै वरवाला,
भाला कुसमची हाधितु जिन जिन.... पारधि पाडल के बडीर, कायर करणी
केवडीए ए, बदली करे भाषद जिन जिन .... फोफळी लस फली बीमारी, बनस्पति
वी मोरी, मोरीया भुगकुंव तु जिन पिन ....
कुंदकली महिनहीमा मा गडीया सहकार,
राब नारंग ना जंगना रंग अपार (३१-३४) गाइ बाइ वर किंवा बिक बदन सेवन,
रिखन-जन-मानंदन, वंदन बपक कुछ मार के रूप में aajster और कृष्ण की स्त्रियों का वर्णन मी सुन्दर क्यिा
कवि