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इन्होंने काव्य का नायक उच्च वर्ग का ही नहीं, किसी भी कुलीन पुरुष को पी जुनना प्रारम्भ कर दिया। किसी शुदध वीर दानवीर, धर्मवीर और कर्मवीर को चरित नायक बनाकर उसे जन साधारण और अशिक्षत वर्ग के लिए सरस काव्य मे मुलम कर दिया है। इस सम्बन्ध में अंग्रेजी के प्रसिद्ध विद्वान विन्टर निट्न का इतिहास दृष्टव्य है। क्या को माध्यम जुन इन चरित काव्यों या वा काव्यों द्वारा जैन दर्शन व उसके कठिन साध्य सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला गया है। रचनाकार:
रचनाकाल की माति प्रशन्न थरित के कती का प्रश्न पी उमा इजा था। और श्री कामता प्रसाद न मे पयरछ नगर संत नगर वर्षद जापित इस पयरच्छ मगर को रापकर कवि का नाम राबरक लि दिया। इसी तरह नागरी प्रचारिणी की खोज रिपोर्ट का भी इसी सम्बन्ध में निराकरण किया गया था बोज रिपोर्ट में इस प्रन्थ के रमिता का नाम अग्रवाल बागरा निवासी बवाया है जो एक दम असंगत व प्रभावित है। रचयिता का नाम कवि ने प्रारंभ में ही दे दिया है। निम्न ररकों में उक्त भूलों का भी परिहार हो जाता - कवि बागरे का वा बता रमना स्थान या तो आगरा.राजस्थान या पायरे का भी कोई सम्धि स्थल सा होगा:
पारद शिशु मदि कवितु न होई ना कोड हो सबार पर्व सरसती, नि इधि होइ कबहुदी'
हिरही बाइन्डियन मारपरी स. विन्टर निदर,माग १ . 0४-७॥ हिदी भाका वि श्री कामता प्रसाद न पृ.१५॥ -अप परिता प्रामेर अंडार, बबपुर, पथ ।।