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अठवल कमल सरोवर वासु कासमीर पुरि लिउ निवास हंसि वही कर लेखन हेड, कवि सचा सरस पणनेड .
न माइ, रोहिनी जो सामान देवी नवइ सघाउ जिन विधि हरि मर कर साधा
अगरवाल की मेरी जाति, पुर अगरोवर उहि उपाति अतः स्पष्ट है कि कवि सस्था था उसकी जाति अग्रवाल जैन थी और निवास स्थान क्या चित आगरा रचना के त में कवि तुलसी दास की पाति-कवि में होउ नहिं चतुर प्रवीन और कवित विवेक एक नहीं मोरे आदि सूमों की तरह बधा भी वानी की समय अपनी लघुता को स्वीकार करता है:बुधि डीन बानों के भवर मावह गुन पेठ
पडित जगह नमूनमूकर जोडि, डीन अधिक जण लावहु खोि
इस प्रकार ग्रन्थ के रचना काल और कती आदि के सम्बन्ध में तक फैल समस्त ग्रम निर्मूल सिध हो जाते हैं। इस प्रकार के तथ्यों को स्वतंत्र रूप से प्रकाश में लाने के प्रयत्न भी हुए है।
-काल्पनिक घटनाओं और अवान्तर व्यायों का विवेचन
कीं मूल कथा से इतर जिन मौलिक घटनाओं और काल्पनिक कथाओं को अपने जैन सिद्धान्तों में डाला है वे इस प्रकार है:
प्रारम्भ में कवि द्ववारा बौबी विकेन्द्रों का वंदन
१० व
पद ३|
१- वही पद ११ २- वही, पद ६० ४- नही प
१० हिन्दी अनुशीलन ९ अंक १४० १३-२०१