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________________ ६१३ उसने विभिन्न देवी देवताओं को प्रसन्न कर अनेक विद्याएं, कुंडल, अस्त्र शस्त्र आदि प्राप्त किए। कुल उसने १६ विद्याएं जीती व प्राप्त की । जवसंवर के लड़कों ने पी ईष्याव अनेक षड्यन्त्र किए पर वे प्रद्युम्न से एक एक कर हारे। मदन का अपार बल कुमारों के सारे अहंकारों का विजेता बन गया। विद्याएं जीतकर उसने जयवर व कनकपाला (मने कृत्रिम माता पिता) को प्रणाम किया । रविनास मैं कनकमाला उसके सौन्दर्य पर शुध हो गई और उसे काम पाव से वाहने लगी। काम विमोहित कनकमाला ने उसे अपने स्तनों में छुपाना चाहा पर प्रद्युम्न वहां से उद्यान में दो मुनिवरों के पास गया उन्होंने उसका व कनकमाला का पूर्व भव बताया। रिवियों ने प्रद्युम्न को विसार्थ कनकमाला से मांगने को कहा। काम विमोहिता ने उसकी स्वीकृति पाकर उसे तीनों विद्याएं दे दी पर इसके बाद प्रद्युम्न ने उसके काम प्रस्ताव को भी पुत्र का सम्बन्ध वटा ठुकरा दिया कमाता की कामुक नारी क्रोध में भड़क उठी। उसने जवसंबर से प्रद्युम्न को अपने साथ की हुई कुवेष्टाओं की मूंठी शिकायते की । दृदि वनर्सवर से प्रद्युम्न के अपने साथ की हुई कुचेष्टाओं की कूठी शिकायते की । वृद्ध जनसेवर ने ५०० पुत्रों को उसे मारने की आज्ञा दी पर प्रद्युम्न ने विद्वया के बल से सबकी मूर्च्छित कर दिया। सबको हराकर उनको आधिपत्य स्वीकार करा पुनः जीवित कर दिया। फिर नारद के कहने से वारका आया। रास्ते में सत्यभामा की पत्नी बनने वाली लड़की को मील बनकर उससे टीम लिया। उदधिमाला का सम्बन्ध पहले प्रद्यु के साथ ही fafted हुआ था । भतः कन्या का बलपूर्वक हरण कर विवाह कर लिया |वारका आने पर अपनी विदुवाओं के से अनेक रूप बनाकर सत्यभामा व महल के परिवारकों को अनेक प्रकार से म सँग किया । ब्राहमण जनकर सब अन्न पैटू की भांति डा जाना, नौकरों को उल्टा लटका देना जादि अनेक कौतुक इस कामदेव (प्रद्युम्न) ने किए अनेक वर्षों के बाद पुत्र को पाकर वात्सल्य में निहाल हो गई। प्रद्युम्न में कृष्ण बलराम के शौर्य की परीक्षा करने के लिए माया की अपनी बनाकर उसका हरण कर लिया प्रयुम्न का कृष्ण और बलराम के साथ भयंकर युद्ध हुआ । उसने अपनी सिध विवादों से उन्हें स्तंभित कर दिया। पान्डवों को इतवर्ष कर
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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