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प्रद्युम्न वरित की कथा अनेक घटनाओं का संयुम्न है। कवि ने क्या का आधार जैन पुराणों से ही लिया है। रामायन औरमहाभारत की स्थाओं के वर्णेन की परंपरा अपच में पर्याप्त मिलती है।' आचार्य गुणसेन के उत्तर पुराण र तथा जिनसेनाचार्य ने अपने हरिवंश पुराण में प्रद्युम्न वरित वर्णन किया है ।११वीं
ग्रन्थ
शताबदी में महासेनाचार्य ने प्रद्युम्न पर स्वतंत्र लिखा और इसके पश्चात् महाकवि
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सिंह का लिखा प्रद्युम्न बरित हमे उपलब्ध है। पध्इस ग्रन्थ अद्यावधि अप्रकाeिa है। इसी तरह के अन्य काव्यों पर पूर्वपृष्ठों में प्रकाश डाला जा चुका है।
इन सबके पश्चात् कवि सधाक ने इस रचना को हिन्दी में प्रस्तुत किया है। कवि ने क्या का आधार उक्त ग्रन्थों की ही रक्या है फिर भी धाक ने इसमें अनेक अवान्तर घटनाओं, अंतर्कथाओं और भौतिक तत्वों का प्रजन किया है। क्या सार इस प्रकार है:
एक बार नारद के आने पर सत्यमामा ने उन्हें प्रणाम नहीं किया ।इस अभिमान का फल हुआ प्रतिशोध नारद ने स्कमणी को खोज कर कृष्ण से विवाह करा दिया था सत्यभामा को उसके सौन्दर्य से अनेक बार तिरस्कृत होना पड़ा। विवाह में शिशुपाल मारा गया व भयंकर युद्ध हुवा। सत्यवाना स्वमन से ईवी रहने लगी। कनकमणी के प्रद्युम्न पुत्र हुआ। पूर्व भव की शत्रुता से धूमकेतु विड्यापर उतर कर ले गया और उसे एक पारी जिला के नीचे बना दिया। विद्याधर कालर्सवर और उसकी पत्नि कामाला ने उसे बड़े प्यार से पाला । पुत्र वियुक्ता स्वमपि विदित की रही। न बढ़ा होकर अनेकों में विजयी हुआ क्या
-साहित्य डा० हरिवंश को ० ४९ भारतीय साहित्य मंदिर, दिल्ली । १- देवि उत्तर पुरानः माचार्य मुमसेनः भारतीय ज्ञान पीठ काही ५० ४१० । ३- हरिपुरा: बाबारी जिनसेन, वर्ग ४७-४८ पद २० से ३१। ४- आमेर पंढार की
महाकवि सिंह रचित प्रम्न बरित (१३वी भंडार, जयपुर।
यादी अशविरचित) भामेर