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रचना कालो- "विक्रम, विक्रम, तथा 1 विक्रम के काल हुई थी। परन्तु परीक्षण में यह बात हो जाता है कि वि० mm की प्रति की भाका अधिक परिमार्जित है। उज्वन वाली प्रति में मिला है। और तिथिया मास नक्षत्र आदि सब समान है। पर उज्जैन वाली प्रति का पाठ पूर्ण प्रमाणिक नहीं कहा जासकता अब रेसी स्थिति में कृति का रचना काल सं० विम' मानना ही अधिक उरित प्रतीत होता है।
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-पंचायती मन्दिर कामा (भरतपुर) ज्या रीवा की प्रतियों में यह पाठ मिलता
सैवत तेरा सौ बह गये पर अधिक इगवारा पये, पावो इदि पंचमी
विनयार, स्वाविनवा जानि सनिवास २. जयपुर दीवान मंदिर, मामा, बेहती या बाराकी वाली दियो । पापा।
मरस क्या रस उपाइ पर, निमुबह परित पख सबउ संवह चौबह से हुए मये, पर अधिक इसबारा भए (जयपुर की प्रति) पाव दिन पंचन सो बारु स्वाति नक्षत्र मनीचर मारु
वह बाइ इबारः परि अधिक पाए मगार (दीवनाची का मंदिर कामा
व प्रतिमाह मिली माराकी बाली प्रतियों में भी पापा - उन्नबाली प्रति जिसमें पा
संबह पंचमहईया मरोबरपि मापबा
मायबबादि चामि विधिबार स्वाति न सनियर नामा -हिन्दी शीन- क-.-.मी माझ्टा का ले।