________________
६०८
मंगला चरण:- रचना के प्रारम्भ में कवि शारदा वंदना करता है और फिर जिन को। सरस्वती के बिना उसके लिए काव्य रचना असम्भव है साथ ही कवि ने पद्मावती देवी, चकेसरी देवी ज्वाला देवी आदि अनेक शासन देवियों को भी नमन किया है और इसके पश्चात् २४ जिनेन्द्रों की वंदना की है :
सारवविणु गति कवितन होइ, सरु आवरण वि बुइ कोइ सीधार पण सुरसती, सीन्हि कई बुधि होड कवडी aast सारद सारद करड, तिम्रकडु अंत न कोई ब feat gas fogमयवाणि वा सारद पणव परिवारि
अठवल कमल सरोवर वालु, कासमीर पुरल निकास चड़ी कर देइ, कवि सधार सरस'
सेत वस्त्र पदमवतीण, करई मलावणि बाजडिवीन
v
पदमावती वन्ड कर लेड, जाला मुवी चकेसरी दे अब रोहिणि जो साफ सारण देवी नव वधार
१
*
aate स्वामी इह हरण, चरबीस उनके जरमरण
for water उपरि होउ, कर कवि जड होइ पसार रचना का संदेष में अध्ययन इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रभु चरित की क्या का gra धार्मिक त्या स्यात है। क्या घटना या वर्णन प्रधान है उसमें अनेक कुडल प्रधान अवान्तर घटनाओं व कथाओं का समावेश है जो प्रधान स्थानक के साथ गौ स्थानक को काती है। प्रसन्न चरित का नायक सर्व जात त्रिय कृष्ण के पुत्र में अतः उसमें वर्ष बीरता पुरुषत्व, शौर्य दया उदारवा स्नेह, क्रोधादित्यमान है। नायक धीरोदात्व है।
है
१- प्रद्युम्न परिक- श्री चैनसुखदास त्या श्री कस्तूरचंद कासलीवाल द्वारा सम्पादित बानेर मंडार (१-४) (अप्रकाशित)
वही । पद ५१