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________________ प्रस्तुत रखना प्रद्युम्न के चरित्र का एक विस्तार पूर्ण व्योरा है। जहां खक प्रयम्न के उदात्त व्यक्तित्व और चरित नायक के ख्यात वृत्त का प्रश्न है, संस्कृत और प्राकृत तथा अपज में इसे अनेक कवियों ने नायक जा है जो प्रस्तुत रचना की अष्ठभूमि में सहायक है। एक आवश्यक बात यह भी है कि प्राकृत और अपच काव्यों में उदाहरणार्थ पठम गरिरहरिवंशपुराण, रिठो मि चरित आदि भन्यो । अब तक नायक या दो ऐतिहासिक पुम ही सेवा शिठिलाग पुलों में से ही कोई। परन्तु प्रस्तुत रचना के नाक प्रयम्न एक से बरित नायक है जिनका स्थान न तो जैन तीर्थकरों में है और न त्रिसहि बलाका पुखों में। अतः ऐसी स्थिति में किसी साधारण व्या उदास्त वीर पुल वा राजकुमार को खना का नाक बनाने वाली यह कृति परंपरा की सीमा में न आने वाली अपवाद स्वस ही कही जायगी। इसका कारण यह है कि अपादिवर काल में परंपरा चन पीले हो गए हमें और सम्भवतः इन नियमों की शिथिलता से आदिकाल हिन्दी और कवि किसी भी धीरोदात्त सुन-समन्वित पुन को चरित नायक बना ली। कठिनाई नहीं शुभव करते हो। यो प्रद्युम्न एक परितवान और धीरोदात्त गुगों में किसी भी वीर पुन से कम नहींधा नहीं हो बाक्षिकात की पति * उपलब्ध होने वाले प्रश्नम्न मधी प्रा और अपईया के इस ध क र बाजे यह भी संभव है कि न होने से या पिना प्राव होने में प्रधान को बरिस नामक बुनने योग्य पान सबका मया हो सबको इस इस्टि उसका महत्व और अधिक बनाता है। संस्कृत प्राव व मोर मावि अन्यों प्रशन पर लिखने की परंपरा मरः प्राचीन मिस बरिख ना पर विवानों की कमियो उपलाची परंपरा विकास को स्पष्ट करने के लिए प्रो लगकर ने पी - - प्रिन परितः सन्यासी मस्तूरबन्ध गालीवाल-प्रस्तावना
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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