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________________ इस ग्रन्थ की मूल प्रति दीवान चीनी के मन्दिर में सुरक्षित है। इस प्रतिशत तथा वही सबसे प्राचीन है। इस प्रति का लेखन काल अवतु १० है। प्रद्युम्न पारित की एक दूसरी प्रति कामा (भरतपुर) के डिलबाल के जैन पंचायती मन्दिर के वास्त पंडार है जिसमें कुल २ पृष्ठ है। पत्रकार ...|| है क्या उसके पदों की संख्या लगाम है।' तीसरी प्रति देहली के सेठ के पूर्व के जैन मन्दिर भंडार उपलब्ध है। यह प्रति वहा के शोध विवान श्री क्नालाल जी ने श्री बारचन्द नाटा को प्रेषित की थी और उनके पन्नों के गुटके में संग्रहीत है तथा इसकी पद संख्या वीथी और मन्तिम प्रति प्रोरिएन्टल इन्स्टीट्यूट उज्जैन के संग्रहालय की है। इसमें है तथा इसका सन 20 है। अड्यावधि का ग्रन्थ प्रकाशित है जो की ही साहित्य संसार के समय पर प्रकाशित होमा।विभिन्न स्थानों पर इस ग्रन्च की जो इतनी प्रथम प्रवियाँ उपलब्ध होती है इस भाषार पर यह कहने में कोई आपत्ति नहीं है कि उस समय या काव्य जन समाज में अत्यत अधिक प्रचलित रहा होगा। प्रतियों के अब और वो मानिक मध्यन पर इसके पाठ संबंधी आडियो अबश्य दूर ___ भामेर र डार की वियों का अध्ययन बने समय प्रधान पति की प्रति मा प्रेस कापी श्री कालीवासीय में प्राप्त निके लिस का उनका नापारी है। प्रम परिम-गड़ब की ही स्वना मानी जाती रही थी। पर नास्व रना बाकी है यह स्पष्ट कर दिया गया है। - बामेरडारबी -बाम श्री बार जब काळीवाल या न दास द्वारा सम्पादित प्रद्युम्न चरित कायका पाडवं प्रस्तावनामामा अप्रकाशित) हिन्दी जैववाहित्यका विविहानश्री कामता प्रसाद जैन ४. हिन्दी सीलवक-भीमगरदमाटाकाला।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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