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:: प्रद्युम्न चरित
सधारू-०४
चरित काव्यों की श्रृंखला में अब तक उपलब्ध काव्यों में १५वीं सताब्दी के पूर्वाद्ध की एक बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी प्रसन बारित है। प्रस्तुत रचना अपने में एक सुन्दर प्रबन्ध है और अदबावधि उपलब्ध आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की लगभग सभी कृतियों में सबसे बड़ी गो लगमम र दो लिखी गई है।) प्रद्युम्न चरित की रैली में भी स्त्रीय गुणों व लामिक बत्वों का समावेश है। इस प्रकार की कृतियों में प्राकृत और अपच की प्रबन्धन बरित परम्परा का सम्म निर्वाह किया है। अन्यपि यह स्पष्ट है अपश भी प्राति सम्पन्न काय वर्णन इन वादिकालीन प्रबन्ध कायों में नहीं मिलता परन्तु जो कुछ भी मिलता है वा अपने ही प्रकार का है। पर्यकर म्यागों और कानी वातावरण में भी इस कासिकात गुम्न बरित जैसी रमा का मिलना की पहत्वपूर्ण घटना है। मो प्रसन्न चरित का रचना काल विद्वानों द्वारा निश्चित हो जुका है। पस्त सहायक ग्रन्थों या अतरंग वालों की रोध होने पर इसक को सम्भवतः और भी प्राचीन कहा जा सकता है। यद्यपि प्राकृत और अपांच
अन्यों की वर्णन ती शास्त्रीय व साक्षणिक बाब या काय निबंधन प्रसम्म चरित में पता दिखाई पड़ते है परन्तु ऐसा होना स्वाभाविकपी। क्योंकि यह रचना स्वयोव्यापातों बात काल की है।
प्रधान चरित का शाइयोपान्त शीलन करने पर मा स्पष्ट होता है किया कि एक और को पहा काय की सीमाओं का आतिम स्वयं करती
और दूसरी और राज्य की दीवानों का भी अपि कर गाती माह प्रबन्धी सिमा बरित मा
गयको कार्य काधका बाबा।
.- मारामार, असियाकोटी, श्री महावीर जी महावीर मन बीड़ा