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स्वरूप यह रचना प्रस्तुत करती है। भरतेश्वर बाहुबली रास की पति पुरान
रूपों के साथ नूतन लाक्षणिक रूपों वाले शब्द भी इसमें मिलते है।
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एतदर्थ रचना का उदाहरण उस्लेसनीय है :
सोss पूनिमचंद जह अब कोणी प्रणमील
तु भवसीय शरीर जइ कोइ जणणी जा नने
नीर संवेग जलहरि वरि
सामी अपराध अहे लोक संवावीया ए पठिक बोलाइ राय कोणी मनि आर्य दिय धनपती माह इति पुत्र जिमि जाइ ए तो मोक्लावी राज बोर पल्ली या संदर बजगह, कहीईस्ट संज
इस प्रकार अपभ्रंश की प्रथमा एक वचन, प्राकृत का न तथा संयुक्ताक्षर के पूर्व स्थ स्वर सोस आदि प्रवृत्तियां धीरे धीरे कम होती जाती है। माषा के रूपों में प्राचीन राजस्थानी या चुनी गुजराती की बहुलता स्पष्ट है।
१वीं शताब्दी के इस चरित काव्य मैघटनाओं का माइत्यअधिक नहीं है। अत: काव्य की क्या में ही बाहुल्य परिलवित होता है। वस्तुतः पूरा काव्य माना की परलता, छन्दों का प्रयोग और कूदों में क्रमिक परिवर्तन, काव्य स स्वात्य काव्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।