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________________ इणि कारणि वयराग तप जिप दीठ मेहता को अह मोर पिसामि नम्ह मलई अजिउ को मोह नरिवजा कित्ति श िओ दव परवमिहि दाम चिम पम पर सह पाद्रवर स्यता र ईड गोलोक पविय जन बम करो पूरी कृषि में प्रकार अर्थ माम्भीर्य, पदलालित्य, कोमलका पदाक्ली आदि का सौष्ठव नहीं मिलता। परन्तु पावाब दो दोनों दृष्टियों में कृति का महत्व स्पष्ट हैदोस में जम्बू स्यामि चरित में विशेषता है।कवि ने पूरे परित काध को ज्वनि के बर्मन ५ अपियों में वित्त किया है। प्रस्तुत काम रोठा दो लिया गया है और दूसरे भारत में रोला ब स्पष्ट है। लापम च ४ बरक परन्तु नी ही चरण मिलते है। असः इन दो कड़ियों का म सोरठा की भाति लगता है। परवेश्वर बाहुबली रास में भी इसी प्रकार विकस पद अनुप्रासमय कड़ियां मिलती। परन्तु र सोरी नहीं इन कड़ियों के विषम पदों में मनुप्रास नहीं लि मी पंक्तियों सोरठों की ही। सम्भवतः य कविता इस प्रकार की कड़िया मिल सकती है । म .mबोरगीमा माना। उबाहरण देखिए अग एक पडबारवि राम मोक्ताव पाठीव गुड मविपई पत्याई बसपा राज मीन बारीबई एव प्रावर गार नरनारी गोयब मिलीय पा राव झारि पडिारिई मोहावीर देविरार पेटाविधि उपाय मावि बी टिकावट गय नहीं है परन्तु मास की दृष्टि की रक्षा और उपयोगिता उतनीय है। मी मादी के जन भाषा
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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