________________
६०१
बिदु समाउ बिसय मुख आदर किम कीजह ईमाल वाडा न तुम्हि सकिन न छीबई -वित बंदर की स्था) पीजी बला भगइविं नाह बाडेसिड तिमि बुकि जिम माणहार बहु खेद करे -सियार की क्या) उबर पडि तर बाग रवि कहीबई विली गई साब बात चंदू शामिन इमाई आसातवर सुचक जाम अम्हि इक करे मिति सिराइभइ जिम क्या हबकरे -लमिनाथ राजमती की क्या) आठइ कलबह बमवीय पंच मयाबि प्रमवर ।
माइ माप बेट मा बाम अन साधु सरीस (२८) इसी प्रकार विन्माली, कुलपुत्र, इविविध मधुर आदि का इष्टान्त तथा बीन मित्रों की क्या इन्टव्य है। ये सब क्याएं जैन समाज में प्रचलित है।
कृति में शत रस ही प्रमुख रूप से निम्पन्न हुमा विरामय व रानियों सहित प्रभव के५०० शिष्यों का चरित प्रब करना मादि स्थल इसी प्रकार है:.
जस भय प्रकइराउ जब भबनी नवयरीय ए यह प्रथा गाइ नर नारी बोबब मितीय
माणे संपन्न राबरमषिमन गोरख को चौडा पूमिमन्द बहाव कोनी प्रमपीर मूक बदवसीय शरीर बह कोड पीजाइन म टु मीर बैग बलहरि रिलि
किम कारन बाराम कारन मोठी पेन्टी मामा कोहि नवापार मा रिषि शिष पार न बानीवर (मन्यू स्वामी बसिबी तिरी)