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बाप भरवि पईसुपुत्र बन्मि इणीजह इमपरि प्रभव पितर तृप्ति तिनि धीबेरि कीजइ
अपडूजा मुहतणी य आस है तब छोडे मिठ इन अन्तर्वथानों और इम्टान्त्रों से प्रभव को वैराग हो आया। प्रभव की ही मावि आठों कन्याओं को भी बम्बू स्वामी ने अनेक अंतधाओं और दृष्टान्नों इवारा समझाकर संसार की नश्वरता बताई है। और इस प्रकार मागे पलिया और प्रभव और उसके ५.. शिष्यों के साथ बम्बू स्वामी प्रवग्या प्राण कर ली है तथा सब निवाण की प्राप्ति करते हैं। अन्तर्वधार:
प्रस्तुत पारित काय या प्रधान है कवि को कहीं भी प्रकृति वर्णन, रितुवर्णम, मासि वर्षन और सौन्दर्य वर्णन का अवसर नहीं मिला। : काम साधारण या वर्णनात्मक हो गया है। क्याओं में मी तथाओं का अवश्य बन है। इसका भी कवि ने इंगित मात्र किया है।राजा श्रेमिक को बर्षमान का जम्बू स्वामी के पर्व भव का वर्णन, भवदत्त सामरवता शिवकुमार आदि के रूप में विविध स्थानों का वर्णन है। इसके बाद कवि प्रभाव बोर को भी जय स्वामी वारा विविध इष्टान्तों और धाओं मनुष्ट करता है और आगे निकल रात्रि में आठौं बाबोंप्रत्यको कवि एक एक पूर्व भव का इन्टा व क्या ना महिशी बना कर दीया पयास के लिए उन्मुख कर देता है। अन्याय बचा जैन वर्ष की प्रवाहित क्या है जिनका बीच सम्बन्ध जय स्वामी जीवन
माण कन्यानों : निम्नति सवार :
दिन कामि कि कला या अवरता करे विउ द शी मर्डकोष करत कि मगहर स्याउ हरिव कडेवर काग जिय पवायर निब-हाथी और कौर का दृष्टान्छ) बीजी बलम विना
खि तिवि वानरि जिप पनवान बनि घरे मिल-लोभी वानर का दृष्टान्त)