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उहापोह करोहि जाम पालि पव देवइ
जा मँह कूमी सुरह रिधि या कीवई लेखाई
इ चिंता कि सिवकुमार अधिरज संसारो
भव निन्नास लेइसिट अम्हि संजय भारी (५० ४३ पद १२)
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उसपदत्त सेहिहिं धरवि धारणि उरिनंदन
होसि नाभि जंबुस्वामी तिहयण जापान
उठी देव अलि डर विई नाचेई
धन धनु महरा कुल एस पुत्त होस
इस प्रकार कुमार का क्रम धारिणी और रिश्मदत्त के यही हुआ। बड़े उत्सव
मनाथ गए। जन्म के पश्चात् डी जम्मू कुमार के विवार, पारवाएं जादि सब विभिन्न थे, अलौकिक में एक दिन वह गुरु के पास उपदेश सुमने पहुंचा। उसके मन में वैराग्य
हो आया :
अठवा इस जाम गुस्मासि प
अहमचारि सो लिइ नीम भववास बिरा
बोनस तु जान कम्मा मनुमबह
जीवा घूया पाठवर तख विवारावय
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वाढ कयामों के साथउनका पाणिग्रहण हुआ। जम्बू स्वामी ने माता पितानों के आदेश पालन के लिए इस पर्व पर विवाह किया कि वह विवाह के दूसरे ही दिन दीवा ले लेना। लड़कियों के माता पिता को भी यह सूचित कर दिया गया। लड़कियों ने अपने श्रृंगार स्म और प्रथम मिलन के सुख के दंभ में जम्मू स्वामी को चुका लेना बाडा पर जम्मू स्वामी संयम की प्रति पूर्ति होकर बैठ गए। आठो कथाएं भी थक कर सो गई। ऐसे ही समय में प्रमय नाम का एक बोर
ft और तालोदृवाटिनी विड्या लेकर वहां आया। उसने सबको विद्वया के प्रभाव से ला दिया और आठो क्यायों का इब्य हरण कर लिया। प्रभव के साथ उसले ५०० शिष्य थे। पर उसकी विशा का जम्बू स्वामी पर जो कि अभी