________________
५९६
: जम्न स्वामी चरित।
वीं उताब्दी में चरित काव्यों में सर्वप्रथम बंदू स्वामी चरित कृति उपलब्ध होती है। यह रचना बंदू स्वामी का परित आल्यान है जिसकी वस्तु में अनेक अन्तर्वथाएं और विभिन्न मोह मिली है। रचना प्रकाशित है। हिन्दी जैन साहित्य में चरित काव्यों का प्रारम्भ करने वाली सबसे पहली कृति है।)
रचना का महत्व इसकी प्राचीनता की दृष्टि है। ययापि वीं शताब्दी की अन्य भाषा कृतियों की पाति इसमें भी अपारदों का पर्याप्त प्रभाव मिलता है फिर भी इस चरित मक परंपरा के श्री गणेश का श्रेय इसी रचना को है। काव्य की दृष्टि में कृति में बहुत का स्थल से है जिनका विश्लेषण किया जा सके। परन्तु विविध वर्षन, अचाएं और दो की दृष्टि से इस रचना का स्थान है। कृतिका रमा काल नी ताब्दी या १२॥ है। स्वामी गरिब (चरित) का रचनाकाल वर्ष कवि सिने कति के वीरया में अपना उल्लेख किया है:
काइ धम्म सो अपि वान टु वयप पोई'
पजिद पूरि मुवीस पब पवा हो शापीका गि रात दिवापि ये विविध माटीमा बारह वरमा कवितु नौपई छाप
सोलह पिण्याविइरिय वामन मल Vबवधि पूरा का स्वामी गरिवी परन्तु कवि ने गाल
र पुग्धिकारा लि है। अभय जैन बालब की इसकी प्रतिलिपि । रासही
-
-प्रारीवालीबीडी.का - पु.॥
४.बडी.