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________________ ही मिली है।यह इस कवियों की प्रतियों की बड़ी महत्वपूर्ण विशेषता है। अंगार रस व वीर रस अप्रधान स में वर्णित है। कवियों का मन इन श्रृंगार रस के बर्फी में केवल का काव्यों में ही रमा है अन्यत्र वीर और श्रृंगार गौण रूप से बर्षित हुए है। श्रृंगार व वीर का पर्यवसान गन्त में हो जाता है। शन्तु रस ही अंगी पाषा की दृष्टि से भी इस चरित प्रधान कान्गों की महत्वपूर्ण बात यह है कि पाषा बहुत सरल है क्या शब्दों के प्रयोग नावात्मक मा मात्मक है जो भाषा को सरस बनाते है। मामा भावों का अनुगमन करती हुई या अब्द योजना अर्थ की अभिव्यंजना व पदलालित्य में वृद्धि करती है। बरित प्रधान कागों में विशेषकर वस्तु एवों के अन्तर्गत अगदों व वाक्यों की बार बार आवृति भी मिलती है। जिससे भाषा में सरलता और प्रवास दृष्टव्य है प्रधान चरित में इस प्रकार के अनेक उदाहरण है जिन पर भागे प्रकाश बाला बागा। पूक्तियों का प्रयोग एवं सुभाक्तिों का प्रयोग भी मिलता है अत: भाषा और भाव अधिक सरस और चामत्कारिक हो जाते है यद्यपि धर्म निरपेक्ष मा लौकिक क्या वस्तु पर बहुत ही कम न काय मिलते है परन्तु इस सम्बन्ध में मंडारों की शेष अत्यनिवार्य है। इन काव्यों की भाषा साहित्यिक और लोक भाषा जब दोनों स मिलते है ठीक इसी प्रकार शैली की त मरत कौर गोड बाल या सर्व साधारण की है। बोललात की भाषा विपिन मूक्तियों के वर्णन की पति को परवी भाषा कवियो और कामों में नहीं विाईती। इस चरित काव्योल घस्नी, बों का आगाणे मान में विश्वास दीपा वर्मन, स्वप्न बन अपन बत्याहीम वार्षिक रीति रिवार मन्दिरों स्थानों, या वीर्ण माविका बन की बने में भावा । प्रारगियों की सामान्यप्रवृत्तियों और विशेषताएं पूर्ववती की परंपराओं का निTE करती है। वस्तुतः बरित नाम ग्रिी की शिकाव्य क म नहीं है। बामे मी साबीही ५वी बाइबी किन तक की कुरित क प्रमुख रचनाओं का विश्लेषण किया जायगा।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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