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उनमें प्रेम कथाओं और प्रेमहत्वका भी समावेश होता है। इन प्रेम कथाओं में कवि ने अवान्तर घटनाओं और कल्पनाओं का रंग भर कर इन्हें सदाचार, उपदेश नीति तथा धर्म के लायनिक तत्वों से ओतप्रोत कर जन सुलभ बनाने का पूरा पूरा प्रयास किया है। वस्तुतः अपभ्रंक में भी बरित काव्यों में इसी प्रकार की धर्म क्थाओं का प्रणयन मिलता है वसुदेव हिंडी और समराइब्य कहा, पविश्यत्स-कहा, पड- कहा स्थूलिप कहा आदि अनेक उदाहरण दिए जा सकते है।
चरित काव्यों में कवि को अलनायक की रक्षा भी करनी पड़ती है नायक के जीवन में जीवट डालने वाला एक प्रमुख तत्व प्रति नायक होता है । बयपि अपभ्रंश के इन प्रेम कथात्मक चरित काव्यों में नायक की प्रगति में बाधा उपस्थित करने, वस्तु में गति भरने तथा शिल्प को आकर्षक बनाने में स्थान स्थान पर प्रतिनायक का कार्य देखने को मिलता है परन्तु आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य के उपलव्ध इन चरित भाख्यानों में बहुधा बल नायक नहीं मिलता। जंबू-स्वामी चरित, नैमिश्वर चरित, प्रद्युम्न चरित तथा विराट पर्व जैसी कृतियों में (विराट पर्व को छोड़कर) स्पष्ट रूप से बल नायक तीन कृतियों में नहीं मिलते। विराट पर्व * नायक के कार्यों का विवरण है। प्रद्युम्न-चरित में भी क नायक तो नहीं परन्तु ऐसी प्रतिकूल घटनाओं का वर्णन अवश्य है जिनसे प्रति वस्तु का पूजन हो जाता है। स्थान स्थान पर विद्याधर, किन्नर आदि उपस्थित होकर वस्तु में चमत्कार व व सत्य की दृष्टि करते हैं। यमपि इनका अचानक प्रस्तुत होना और अदृश्य होना बहुत स्वाभाविक नहीं लगता। परन्तु उन परिकार पूर्व पूर्ववर्ण या पूर्व से जोड़ कर कवियों ने उन्हें स्पष्ट अस्पष्ट रूपों में बरित नायकों के जीवन से सम्बद्ध या कर दिया है। गतः वे कथा प्रवाह में अधिक अवरोह प्रस्तुत नहीं करते।
eft काव्यों का प्रारंभ संपलाचरण से लेता है जिसमें बहुधा कवियों मैं निद या सरस्वती-कर किया है। इन काव्यों का विभाजन व
में नहीं है, परन्तु हीं कहीं मा बादि विभाजन सूचक पद हैं।
इन चार
काव्यों में रस की इष्टि से बहुधा श्रृंगार, वीर करुण