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मनोरमा तथा उसके सुन्दर पुओं को देखा और पन्ने पर उसको सुदर्शन की इस बाल का पता लगा। उसने दधिवाइन की रानी को यह सब बता दिया। रानी का गर्व जाग उठा उसने भी उसको भाने की प्रतिज्ञा कर ली। राणा को एक नगर के बाहर उत्सव करा कर स्वयं पर रह गई और पुदर्शन को घर बुलाया तथा सून गार करके उससे भोग की याचना की। पुदर्शन उस समय शीलात का पालन कर रोने किंचित भी विचलित नहीं हुए। रानी ने सय बदला और स्लिाई कि यह इष्ट व्यक्ति उसके अमापुर में धुम मामा । राजा ने उसे कारागार में डाल दिया, मृत्युदंड दिया और उसका काला मुंह करके गधे पर बिठा कर सारे नगर में चरित्रहीन कहकर घुमाया। पर कुली पर बढ़ाने का ज्यों ही उपक्रम हुआ, जिनवर की कृपा से ली सुन्दर पदम के सिंहासन में बदल गई। पुष्प दृष्टि होने लगी और सुर्वन के पीक का यह स्वर्ग कल गया। इस प्रकार सेठ मुईन ने अपने गीत को अन्ड बनाए रखा।
वेष में बडी याकवि ने तीन सालों में क्या का विभाजन किया है और शेष दो बालों में साधना, याला महत्व तथा सुदन की दीक्षा का महत्व स्पष्ट किया है।
रचना प्र की में लिखी गई है तथा कवि ने राज्य नगर, स्त्री, म, जन्म, प्रकृति, पुर, स्थाबील आदिबर वन विकास की इस्टि के रचना साधारण है परन्तु भाषा तथा वर्णन की प्रबन्धात्ममा पर्याप्त महत्वपूर्ण है। कवि ने धिा, कर्मवाव, अत, तथा वितिया आदि का महत्व पाया है। स्था का सून बायोपान्त काव्य में प्रबाह बनाए रखा है। खमा में वर्णित क्सिबा भी अपना महत्व रखती है। इस तरह इन विविध माँ कवि ने गुर्कन
शीत प्रन्धको योगा। प्रवास था पापा के स्वरूप के लिए कुछ अन्दर स्थलोग उसे किया या प्रारंभ में ही कवि ने सुन के मोरवा दिया the
माधी या निधनावी परि मारि निवारी नवरमाहि जिन धर्म सविई परि