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की पहिमा, उसका तथा उसकी दीक्षा और संसार त्याग।
कवि ने पहले ४जिनवरों की वंदना की है और फिर शासन देवताओं की और पश्चात् शारदा का स्मरण किया है। सरस्वती की कृपा के बिना वह
नी मुदर्शन केशील का दर रेखा चित्रकार समा अत: यह उसने प्रारम्भ में ही स्वीकार किया :
पाडिलू प्रपनीय अनुमिइ विवर अवीर पाइ शमना देवताए ती नाईटीस समरीय मामिपि भारदारा निधि सामाख्य भाग पान प्रति पए कवि हिकार उठा सरसति ममार गा वि सुबगिई
मन्दिर बिक रास रवि जो मन रेमिह (1-2) विष में दर्शन सेठजील की क्या इस प्रकार :
भरत के बीच की चम्पा नगरी में दधिवाहन नामक राजा और अपमादेवी उसकी रानी राज करो उस नगरी अवास नामक धनिक मठ के मुदर्शन मा पुत्र नरम मा बीरे धीरे धुर्कन सकल कला सम्पन्न होता गया और उसके बीवन में करते ही उसे पिता ने मनोरमा नाम पीलबदी सड़की पाणिग्रहमा दिया और उसे तीन गुन्दर और रूबी हुई। पैसे भी या परिधान अति के साथ राजपुरोहिला कपिल ने मिटा गाडी और प्रतिदिन न दोनों को मिलता निम्टवा परिवर्तित होडी गई। दोनों कि सबाटो विवा। कि इसी कारण विलम्ब पर पहुंचा। कपिल की पत्नी ने से इसका गरब पूछा गुणी मित्र की या न कर मारिणी उस पर शव हो गई और उसे गम भाव बाडने लगी।सुदर्शन खूब जिनवर मा बसेर पीलवान का जीवन बिताते। एक दिन पुरोहितलाके
मार गाने पर पारिपीने से पर बुला करपात में काम मावमा प्रस्ट की। पुर्वन की डिमा। ने अपने गे नवीन कर उसके प्रति पाई। पनि नगर बाहर महोत्सव थापित की पत्नी ने न पुर्शन की पत्नी