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पुदर्शन से जल प्रबन्ध
प्रबन्धो की इसी श्रृंखला में वो बतादी के उत्तराईध के अन्तिम दक में एक महत्वपूर्ण की गुवन सेठ शील प्रबन्ध है। रचना १५०१ की है तथा रचनाकार श्री चन्द्रभूरि के कोई शिम्य है। पाटन मंडार की प्रति से लिपिबन्ध की गई इसकी एक प्रतिलिपि (सं० १५७t) की राजस्थान पुरातत्य मंदिर जयपुर में सुरक्षित है। अद्यावधि, यह प्रबन्ध प्रकाशि है। स्वर्गीय देसाई ने इस कृति की सूचना कई प्रतियों की सूचना गुजरात के पंडारों लिए दी है।'
प्रस्तुत प्रबन्ध ४. कड़ियों में पूरा हुआ है और जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है यह काम्य भुदर्शन मेठ के शीत की उत्कृष्ट कहानी है क्या चरितमूलक क्या प्रधान काव्य है। रील का जीवन में क्या महत्व है। शील मनुष्य में उत्कृष्ट गुणों का समावेश करता है और यही भाव जीवन की कुन्ची है। यह एक ऐसा तत्व जिसकी साना मनुष्य को देवत्व प्राप्त करा देती है और सुदर्शन सेठ ऐसे ही परित नायक है जिसकी परिव जैन समाज में मान भी बाद माना जाता है और उसे शील का देवता माना जाता।
मुबीन पेशी की या परम्परा अपच मन्त्रों में भी मिल जाती है। लोष कापावा काब्य पान प्रविधि प्राप्त कर चुका है। काब्यका सा बाम का सरस वस्तुतः काव्य की दृष्टि रकमा इनी पात्यपूर्व नहीं लगी । कवि का मम स्वत मात्र या भाग को अधिकाधिक विकशित किया। परि मूलक भास्वान काव्यों की दृष्टि से मारना बड़ी महत्वपूर्ण वस्तुतः यह काम कवनात्मक या न्य।
अपनीलमबन्ध पाप गोंकित किया गया है।इस गलों कविनेगुनीक की या प्रस्तुत की और शेष दो डालों को सुन
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सिविल प्रमिला विमाप-राजस्थान पुरातत्व बिर जयपुर। नगर कवियो:भीमलालदेखाई।