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________________ इस कवि ने अक्षर मैल में काव्य रचना की है। परन्तु यह स्वमसि उपजाति से ही स्पष्ट होती है। कृति प्रबन्ध है अतः सामान्यसा में मात्रा मेल द, इहा, "पाई घरमाल, पदमी सवैया आदि देशी छदों का प्रयोग है। जयशेवर सूरि क्यो कि असाधारण कवि थे अत: बहाने अवरमेल दो म प्रयोग किया है जो साधारण कवियों के का की बात नहीं है।नयों पर विस्तार से विवेचन प्रस्तुत प्रन्ध आगे छेद सम्बन्धी अध्याय में किया जायगा। कहीं कहीं कवि हिवबोली के अन्तर्गत गत्व डी का भी प्रयोग किया है। कवि की इस गद्ध शैली का वह उदाहरण इस प्रकार है: तिवार पूठि मोक्साकिर, स्वामी, स्वामी तर आयसपामी, बालिग विवेकरा विस्तारि विश्व भस्याउ तत्व चिंतन पट्ट हस्ति दूर आसपि पीयाइ पीवाई बाधा परिवार। ये जि काड प्रायड वेह रईबह बस्न दान बनिबार, तत्व क्या अंबाबाई का बलंब लालाई, माधुषा इदम गहगाइ इष्टदोषी तर दोडण, पापि पुश्य रंग पाटन।' इस प्रकार द, भाषा, पान, ली, काय, अर्थ गौरव और पदलालित्य ज्या संगीत लामम ममी इन्टियों से त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध उत्कृष्ध काव्य है। कृति प्रसादा है और निर्वेद उसके मूल में कुल १दों में कवि ने इस प्रको लिखा आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में ऐसी कृतिया अपना पूर्व शिष्ट्य रखी। - परसबागबली प्रबन्ध: 385 Hiमादी एक प्रकारबाइबली-प्रबन्ध मिला है। यह काव्य पी प्रवन्ध लीलिया गया है। श्री स्वर्गीय देशाई मोहनलाल ने भी इसकी सूचना दी। या अन्य सा होगा यह तो क्या कठिन है परन्तु की भाषा पाव और उपलय उदयरमों के आधार पर इसकी परीक्षा की जा - 1-मिगुवन दीपक प्रबन्ध पब १२९.१५ मुझकवियोः श्रीमोहनलाल देसाई-भाग प्रथम-१०३०-३२॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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