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________________ ५७७ (५) बलथर बुडई जलण न दाइ मड वाइ मर डा मिल रहा रवि उग्रगामि अंधार टलई पास पनी न साहिषि छलइ मेवारि(स) द्विध गयंद पलाह, घट किम नाद धन ने पाइ हिम पडवइ जिम बापड माक, मफ भाग कि बराक इस प्रकार कवि ने उपमा पक, उत्प्रेक्षा, उदाहरण, दृष्टान्न, म वर्णन, मपन्ति विरोधाभास संदेड, यमक लिव आदि अनेक मलबारों का सफल वर्षन दिया है जिनके उदाहरण अपर दिए जा चुके है। काय ली और दो की दृष्टि से इस रचना का पर्याप्त महत्व है। कवि ने इस वैविध्य को की लता से स्नोया वास्तव में प्रबन्ध चिंतामभि का पहा भाग मात्रा दौर तयध इन दो कमों में विभक्त है। मानात्मक में अबीर, वउपर और दहा है और उनके अतिरिक्त पद्धरि बरमा, मरम्ट दुर्मिला और गीति नाम के छव दिखाई पड़ते है वो प्रख्या में अधिक नहीं है। और अपन में जूनी गुबराती या प्राचीन राजस्थानी में आने वाले छंदों में वस्तु छंद प्रमुख है। इसके अतिरिक्त सम्पब, सरस्वती पवल, तलद्वारा पक और मित्र मात्रा का प्रयोग भी कवि ने क्यिा है। योग भाग में बोरों जैसे सभी दुपद या कई कड़ियों पद तथा काण्ट और पक का मिय मिलता है। हायबंध पूरे काय ' भामही है। मम भाम' बो बोली बार है।' प्रस्तुत काव्य में सरस्वती धवल और पवल के देवीद है। बोहा भी इसी बस मिलो है। विकासको अन्वत बहुधा उपजातिय मिलता है। पहली का उल्लेख भी की बला' पडली बनाने की विधि कुछ परवीना और प्रवत्रा होती है।जिस प्रकार प्रस्तुत काम के १८.. और बरगी .. ५.. ... ... .. इन परमो बित्य मन्त्र का प्रबना है। १- प्राचीन कामालाला की दीपा...ब, •n-10 माम वियोश्रीमाली,..
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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