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प्रदान की है। वर्णन का वैचित्र्य इष्टव्य है:
मोहा ओई की किया गयुग प्रवृत्ति लेइ संपत्ति मोहा कृषि कारपि अहि टालिया य बाप vaई मेटउ मरइ विडा र गमि वास बापण बास पाई किम होइ बाद
का केसर भूम चरई र रमि तिमिर पुति
बरि भड मेगन तू गबर, पदरत हिव परवि (४.५) और अन्त में कवि प्रवृत्ति को बनाता है। बेतना विक की सहायता से परमांक
सेज को पुनः त्रिभुवन का राज्य दिलाती है। कवि के प्रवृत्ति को विवेक के दो भरत बाक्य के भने कान्य की समाप्ति इन ब्दों के साथ करते है:- मोर का बंदोह होड़कर परमेश्वर का अनुबरण बरो, सब मत्व ग्रहण करो, गारमायो का विनाश कर पाच इन्द्रियों को जीतकर समरस प्रहम करो, और एक कार में मम की स्थिर कर परमानंद की प्राप्ति करी:
पाइ लागिय पाइ लामिय बलि मुविवेक शिक्षा दि इसी तुम्ही वासापरिधि मैडिर परमेसर अबरत मोह र अदोड नि, समता स्थळी पावरल, पमना स इरि प्यारि मी पाबा जिला बेला मारत पूरि
लिपि at बिर बारा पा परमानंद (16) न कवि की कुन्दर माग ने जिनो कवि की अनुमय प्रौदडा और माशा स्पष्ट होती है। इसियों बारण निम्नाति है। (1) बेगार नइमार विकराल
मिस भिबार लाल - (४२) ON बिग्निबहावाबाईनिम विष शिडळ धाड
मारि विजोडबोडी वारि - (2010) (प्रिय विमारी रात चारीली काजि निवारी
-बीवर माला, म दीवाली रितुद - (११.) ४ नीपि गुम वारि वसा, करि कुल मेरय ,
बाकि सिवाल विहीबाजीह नही है बाल- (१-९९)