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________________ सकती है। इस कृति की प्रति कुछ वर्षों पूर्व श्री देसाई को पाटण मंडार से उपलब्ध हुई थी परन्तु इस समय इस कृति की पति प्राप्त नहीं है। अतः इसके रचनागल लेखक समय स्थान आदि के विषय में बताना बहुत कठिन है।वस्तुतः इसके आदि भाग और अंत के कुछ उद्धरण यही प्रस्तुत है: उताल बौपाई पढय जिपेयर पायन नित से अंब केरो स्वामि बहनीस भादित नाम अपना इरगति नाति नामि परमादेई वर बीच अनोपम, नायल गछि गुमाय श्रीगुण समुद्र पूरि गुरु गिम्या गहि अलि अपयशवाय नास पाटि अप जि दिवाकर शाबर जिमगंभीर श्री गुपदव सूरि गुमि पूरित समरथ साडसचीर वास सीस वीर रस पि श्री गुप रवगह मूरि रिसवर जर अंक माना पाप पलाइ इरि मादि गरि काबीनवी, ब्राझी बमवर बीपि भरडवाहु वली लो पबाटो पुक पानि कीजि (-) उमस उद्धरण से स्पष्ट है कि कवि ने इसे पवाडो का म बिया खाली के इस रित प्रध को कवि ने लोक पापा अम प्रचार के लिए लिया होगा। छचों का विध्य भी इसमें होगा, ऐसा स्पष्ट होता है। बाहुबली और परत का करिव कवि ने बरपावाली शिक्षा है। कृतिस बिडीव बारकबापती देशप और उसके बही बनने का वर्णन विwी बन जाकर भी उसे हाथी से उतरने व अई त्याग का उपदेश करती की या कई और क्या परम्परा में कवि ने भरतश्वर बाहुबली रा ) बाने का म लिया है। वनपाशी परमता बीर
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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