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उघर त्रिक प्रक्चन नगरी में संयमत्री का पाणिग्रहण कर लेता हैसियमत्री के वरण में विजेक को तप एवं संयम से अजेय अस्त्र शस्त्र मिले। साथ ही उनकी बड़ी असाधारण सेना भी। मैन्य की सहायता से वह मोह पर आक्रमण र देता है दोनों में भारी यइथ होता है। मोह बुरी तरह घायल होकर परास्त होकर मारा जाता है प्रवृत्ति पुत्र शोक विह्वला हो जाती है और मन को भी पुत्र प्रत्य की बड़ी पीड़ा होती है पर अपने दूसरे शुभ विवेक के समकाने से वह ध्यानरूपी रा सरोवर में निमगन हो जाती है और विजितेन्द्रिया बन कर मुख प्राप्त करती है। विवेक स्वयंअपने पिता मनको पीउण्देश देते है। इधर चेतना रानी का कार्य भी उल्लेखनीय होता है।वह परमहंस रागा को कायानगरी और माया के मोह बंधनों से मुक्त करा पुन: उन्ने त्रिभुवन का राजा बनाती है। चेतना रानी अनेक बों तक अज्ञात वासिनी बन कर रहती है और अब उसे यह जान हो जाता है कि मोह पर विवेक की विजय हुई तो वह पुनः विवेक से सहायता मागती है और इस प्रकार महाराज परमहंस पुनः त्रिभुवन का सानन्द शासन करने लगते है। अन्त में कवि भरत वाक्य कहकर काव्य समाप्त करता है।
संविष त्रिभुवन दीपक का था और मक बत्व यही प्रस्तुत कम काव्य में स्पक तत्वों का निर्वाह कवि ने बहुत ही अलता से किया है। प्रत्येक पाली किक प में भी क्या सूत्र को पूर्णतया पुष्ट करते है। मध्युगीन हिन्दी साहित्य में तुलसी ने रामचरित मानस में कवि ने मानस पक को स्पष्ट किया है कि मी बाध्यात्मिक निर्वाह और मनोवृत्तियों के प्रतीक बहुत सफल नही बनो। परन्तु कवि ने की कोलि की कि बलोकिक मावि ठिाकर काम
या सत्य सत्य को परम पुष्ट किया है। आधुनिक काव्य में जाकर प्रयाद की कावामी भी हो सकतत्व की पुष्टि मिलती है दुधा यनु, मानव या पानों साथ मा लण्या काय, निवेद, संधर्व, मानन्द नादि मों मानही मनोगों की प्रतीक बोना स्पष्ट होती है। कास्य को देखकर या लाना कि वह कवि ने बैन कवियों के संस्कृत में लिइन्हीं ग्रन्थों प्रभाव से पक पति को अपनाया होमा।