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पन अमात्य का परिवार भी बहुत बड़ा है। उसकी दो सवती पत्नियों का नाम प्रवृत्ति और निवृत्ति है प्रवृत्ति का पुत्र मोह और निवृत्ति का विवेक । दोनों घोसे से निवृत्ति और विवेक को बाहर भेज देती है और अपने पुत्र मोह को राजसिंहासन दे देती है। मोह अविदयानगरी का शमन कसे लगता है । अविल्या नगरी मोड स्वयं की ही बसाई होती है। मोह की रानी गीली दुमति होती है और उसके तीन पुत्र और तीन पुत्रियों होती है काम, दुवेक और राग पुत्र
और मारि (हिंसा) अधृति और निद्रा ये तीन पुत्रियो। अपने उपयुक्त आवास खोजते निवृत्ति और उसका विवेक प्रवचन पुरी में आ जाते है और इभ और दम नामक वृक्षों की पीतल हाया में जाकर बंदना करते है और अपने भविष्य के मुष दुख को पाये है। कुलपति अपनी पुत्री पुपति के साथ विवेक का विवाह करना चाहता है उसने प्रबचनपुरि के स्वामी अरिहंतराय को प्रसन्नर लिया और उससे कार्य में योग देने की प्रार्थना की। उसके आदेश दोनों का विवाह हो जाता है और विवेक के कार्यों से प्रसन्न होकर अरिहंत राय उसे पुन्य रंग-पाटम का अधिष्ठाता बना देते हैं। साथ ही विवेक को यह भी समझाते है कि यदि तुम उनकी पुत्री संयम श्री के साथ भी विवाह करको दो रओं का पूर्ण निार कर सकोगे। परन्त विवेक दो पत्नियों के परिणय कला नहीं जा पीर धीरे विवेक वैभवशाली होने लगा। उस राज्य विस्तृत और व्यक्तित्व मक होने लगा तो प्रवृत्ति का मोरईची करने लगा और उसे अपने अनुचर बैं इबारा यह ज्ञात हो जाता है कि अब संभवतः विवेक मेरे राज्यपर मानव करेगा वो बहस हो जाता है और अपने बड़े कई मकान को अन्य रंग पाटक पर आमण करके विकको अध में हराने का मादेशवे देखा है। काम का प्रयाम HTS मानकारी सबको काम बना डाला। सब कामुक हो गए।विवेक को पी मा पाइने उसी समय निश्चित यिा कि काम (वाना ) बचने नवल एक ही मार्ग है और वह संबन श्री का बरमा विवेक रबी समय प्रवचन पुरी लीवरम को पांच माना है। पर शायरंग नारी को काम जीव लेता
पर विवेक निकल जाना , विवेका काम की विजय अपूर्ण रही।