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जो भी हो, रुपा काव्यों की परम्परा में त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध एक महत्वपूर्ण सोपान है जो परवर्ती उपक काव्यों का उद्गम कहा जा सकता है।
पिन दीपक प्रबंध: क्या और विश्लेषण
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संस्कृत भाषा में जब विद्वानों एवं इविधवादी लोगों के लिए इसी कवि ने जब प्रबोध चिन्तामणि लिखा तो उसे जन साधारण के लिए भी संभवतः एक मुन्दर काव्य प्रस्तुत करने की इT हुई होगी और उसी भावना सुधार और आध्यात्म प्रचार के लक्ष्य से प्रोत्साहित होकर कवि ने यह काव्य जन भाषा या पुरानी हिन्दी में लिखा है। काव्य में कती- ने संस्कृत म्फा काव्य की लगभग समी जीयार विधाओं TT किया है। इस काव्य के स्पक तत्व और क्या तत्व का विश्लेषण इस प्रकार किया जा सत्ता है। क्या का लौक्किम में सफल नितीह है।भुिन एक विशाल राज्य जिसका राजा परमईस । परम ईस के अत्यन्त सुन्दरी रानी। नाम येतना।दोनों अपना समय जीवन आनंद से बिताते है। एक बार राजा परमहंस माया नामकी सुन्दरी पर मुग्ध हो गया। चेतना को जब यह ज्ञात हुआ तो उनको रोका और उसका कारण बताया कि माया से जीवन और राज्य की हानि होगी।परन्तु राजा जी मन गए, माने नहीं। राजा ने यहा तक कि माया के सौन्दर्य के पीछे ना की उपेक्षा कर उसका त्याग की कर दिया। फलतः राया संकट में पड़ गया मावा केसाथ भटकने से उसका सबस्त त्रिभुवन का राज्य बला गया।राजा विवश होगा और पकोटा राज्य काबा नगरी बसाकर रहने लगा। इस काया नगरी का समस्त कार्यपार मन मंत्री पर छोड़ कर विश्वस्त हो गया है परन्तु मन दो दुष्टता का प्रतिरूप है। मन अमात्य की बात मानने से राजा पर भारी व्याघात और सैक्ट आ जाते है। उसने राजा पर मानक करके उसको कारागार में डाल दिया, राज्य का स्वामी स्वयं बन बैठा। समस्त राज्य का विनाश कर दिया। राषा परपस को अब अपनी प्रियरानी वेतना की सारी बाते स्मरण होती है। राजा को बड़ी मात्मगलानि और पश्चाताप होने लगता है।