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________________ पार काठगों का दूसरा नाम प्रतीक काव्य भी है। कवि कुछ निश्चित मनोवेगों गा मनोभायों को पात्र मान लेता है और वे मनोभाव आद्योपान्त पानों का प्रतिनिधित्व करते है। इस तरह पूरे काव्य की ख्य संवेदना इन्हीं प्रतीकों के आधार पर पूरी होती है।वस्तुतः इन प्रतीकों का म मनुभ्य के हाव पात्र, गुण अवगुण, प्रवृत्तिमा, शारीरिक अंग, आदि अनेक तत्वों को दिया जासकता है और ये प्रवृत्तियां जीवित पात्रों की भाति वस्तु का वहन करती है। इन मोवृत्तिमूलक पात्रों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये स्वभाविक होते है तथा लौकिक अर अलौकिक दोनों स्मों में इनका निवाड होता है तथा के असत् तत्वों का पराभव दिला पानवता को विजगिनी बनाने का संदेश देते है। इस प्रकार इन रुपक काव्यों का बड़ा महत्व है। उपक काव्यों पर प्रकाश डालते हुए श्री रमणलाल शाह ने लिया है कि आमा रुपक कारे महत्वच नी प्रस्तु ए ख्याल मा राखबानी होय हे के बरेक पात्र न वर्तन अनी भाषिक खासियते प्रमाणे ज बतावत्रामा आठ होय अटले के आचित्य पूर्ण मालेतन मेज मेनी मोटा मा मोटी सूजी, मोटा मा मोटी सिद्धि अने मोटा मा मोटी मोटी होय है। उसक औचित्य पूर्ण झालेखन परावई नश्री होत ते वायकाफी वाजक ने रस पडतो मधी होठोमिक प्रभी भी धारे पात्रो अने म अनी क्या वधार लंबाती जाय, सेम तेना कविनी सौटी यथारे। अरनेज वी सावत्यवाली पर अंथीयोन बन कर है क कपई कार्य मनाय है। सामान्य व्यवहार मा संसार सागर मानब अहेरामण, जीवन वाय, काल गंगा इत्यादि अब्द उपको आपने प्रयोजीन सीमा परन्तु जैक माली स्यक, ग्रंथीनी वाडी कृष्टि क्वी होय है बिभुवन दीपक प्रबन्ध नी क्या पर भी बधारे स्पष्ट रीत समार।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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