________________
का इन्द्रियों द्वारा साक्षात्कार या तादात्म्य कराने के लिए कवि इन रुपक कानों में रूपक और उपमा का सहारा लेता है। रूपक काव्यों की रचना का उद्देश्य पाठक और श्रोताओं को अन्तभावों और मनोवेगों की ओर आकृष्ट करते हुए उन्हें आध्यात्म की ओर उन्मुख करना है। क्योंकि रागी और विषय वासनाओं में रख आत्माओं पर वैस कोई प्रमाव अंकित नहीं होता|अत: उन्हें अनेक रूपों एवं उपमानों का लोभ दिसाकर त्वं हित की ओर लगाने का उपक्रम किया जाता है। मक काव्यों की पुष्टि परंपरा प्राचीन काल से ही आई हुई जान पड़ती है परन्तु वर्तमान में जो उपमान उपमेय म साहित्य उपलब्ध है उससे उसकी प्राचीनता का स्पष्ट आमास मिल जाता है।
नाट्य शास्त्र की इस उक्ति-अवस्थानुकृतिनी-ट्य समं दृश्यातयोग्यवे इस सूत्र के अनुसार म अथवा अक की व्याख्या के आधार पर कवि रूपको इवारा पानाओं का मूर्त स्वम प्रस्तुत करता है। परन्तु क्यों कि सका औचित्य श्रव्य क्या में अधिक होने से विशाल रूप वाले ससक काव्य लोक प्रिय नहीं हो सके। क्योंकि सपा तत्व रंगमंच पर कम ही जमता है और आध्यारोपों के अंगों आरोपित वास्तविकता प्रयोग की सलता बाधा पवाजी पूर्वभाव अफ्निबत पात्रों का कार्य करने में असमर्थ हो जाते है। अत की घटना इम्ब की अपेक्षा अन्य और क्या विश्व अनुकूल पड़ती है। इसे देखकर कवि जबर भूरि ने प्रयोग बंध का मार्ग छोड़कर काव्य बंध का मार्ग लिया जो अधिक मत बन पाया है।
+- अनेकान- ४ किल औल, ११५ सक काव्य परंपरा-श्री परमानन्द , जी . १५९-२५॥ २ नहीं - गुजराती साहित्यमा स्वमो. इवारा मजमूदार: पू. १९८६