________________
३२
कृति में नहीं हो सका। साथ ही काव्य रूपों के स्वरूप का विस्तृत परिचय नहीं दिया जा सका । लेखक ने जो प्रवेशक नाम से जो प्रस्तावना लिखी है वह पात महत्वपूर्ण और वैज्ञानिक है। अद्यावधि उपलव्ध आदिकालीन तथा मध्यकालीन काव्य कपों का चित्रण करने वाली रचनाओं में यह कृति पर्याप्त महत्वपूर्ण है हिन्दी के विद्रवान इस कृति के अध्ययन में गुजराती लिपि और भाषा में लिखी जाने के कारण ही असमर्थ रहे । यौं कृति पर्याप्त सारपूर्ण है।
(७) गुजराती भाषा की उत्क्रातिः
वीं शताब्दी से १८वीं शताब्दी तक की रचनाओं के उद्धरणों द्वारा गुजराती भाषा के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालने वाली यह एक प्रमुख कृति जिसकी लिपि हिन्दी है तथा मावा गुजराती। इसमें बैचरदास जीवराज दोशी के अनेक व्याख्यानों का संग्रह है। बम्बई यूनिवर्सिटी द्वारा सन् १९४३ में यह कृति प्रकाशित हुई। व्याख्याता देवीजी ने सिर्फ भाषा वैज्ञानिक रूप में ही इन कृतियों का परीक्षण किया है। लेकका प्रास्ताविक या आमुख पर्याप्त सारपूर्ण है। देशी Heerat aur ani सम्बन्धी लगभग सभी उपलब्ध तथ्यों का प्रामाणिक स्वरूप प्रस्तुत किया है। रचना प्रामाणिक और गौर्जर भय के विकास पर प्रकाश डालती है। गुजराती भाषा की विभिन्न कालों में जो स्थिति हुईउसके इतिहास कोसने के लिए यह कृति प है।
(८) गुर्जर राखावली:
मावा वोरिएन्टल सीरीज़ से जी०ए०भट्ट ने इसे सम्पादित कर प्रकाशित किया है। सम्पादकों में मीरा बाई तथा एम०सी० मौदी का नाम उल्लेनी है। वह कृति मोरिस्ट इन्स्टीट्यूट वहीदा से १९५६ में प्रकाशित हुई है। इस कृति में सम्पादकों ने आदिकालीन रचनाओं को प्रकाशित किया है, जिनमें fe पाडव र विराट पर्व, नैमिनाथ फाट, अर्बुदाच बीनती बिडंगति
eus, arr विमा विकास भवाड़ी है। ये रचनाएं अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रति या
●
प्राचीन राजधानी की है। रचनाओं में लगभग
इनके द्वारा
१५ वादी की ही है। बाद में पुरानी हिन्दी की स्थिति का अध्ययन हो