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________________ ३३ सकता है। विद्ववान सम्पादकों ने इस कृति के प्रारम्भ में प्रस्तावना देकर रचनाओं के समय स्थान और प्रति परिचय आदि दिए है। साथ ही अन्त में परिशिष्ट तथा विभिन्न टिप्पणियों द्वद्वारा रचनाओं को समझाकर अधिक कठिन होने से बचा लिया । रचनाओं के पीछे दिया हुआ संविप्त शब्द कोष भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वस्तुत: इसी प्रकार अन्य रचनाओं का सम्पादन होना मी अत्यावश्यक है। वस्तुतः यह प्रयास अपने में पूर्व तथा एक काल की कुछ प्रमुख रचनाओं का चयन है। ऐसी की रचनाएं आदिकाल की सम्पन्नता पर प्रकाश डाल सकती है। (९) प्रबंधावली: प्रस्तुत रचना श्री पूर्णचन्द्र माह के लिये हुए लेखों का संग्रह है। ये लेख स्वर्गीय श्री पूर्ण नाहर के सुपुत्र श्री विजयसिंह नाहर ने सन् १९३७ में ४८, इन्डियन मिस्ट स्ट्रीट, कलकत्ता प्रकाशित किए। रचना के निबन्ध ४ मार्गोसाहित्यिक, धार्मिक, सामाजिक तथा विविध में विभक्त है। इनमें साहित्यिक निबन्धों में प्राचीन जैन हिन्दी साहित्य, त्रैमासिक शिलालेख, राजगृह के दो हिन्दी ले तथा धार्मिक उदारता लेख महत्वपूर्ण है। श्री नाहर जी ने उनके संग्रह की १६वा की कुछ अप्रकाशित रचनाओं की ओर संकेत भी किया है। aurant में creeजी ने पुरानी हिन्दी की वी शताब्दी की एक वृक्ष नवकार desवीं की पार- जम्मू स्वामी रासा, रेवंदगिरि राजा नेमिनाथ चपाई, तथा उनue माला कहानय सम्यव चौदहवीं की रचनाएं चन्द्रव की ११, बोलहवीं की २३ वी की ५३, वथा १८वीं बतादी की ४३ रचनावों का उल्लेख किया है। हिन्दी जैन साहित्य की रचनाओं का स्मरण दिलाने के लिए इस रचना का महत्व अनुभव किया जा सकता है। A (१०) ऐतिहासिक जैम काव्य संग्रहः · श्री अगर माल्टा में सं० १९९४ में सम्पादन कर, शंकरदान भैराज मास्टर नं० ५०६, भारमेनियम स्ट्रीट के प्रकाशित की है। प्रस्तुत किय ये विशेष उपयोगी है। एक तो ऐतिहासिक और द्वारा बाचा वाय। कतिपय eter कायों के बहिरिन्द्र प्रासी काव्यदृष्टि से संग्रहीत किय
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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