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कि इसके द्वारा तत्कालीन जैन कवियों के पाठ के साथ इन आदिकालीन अजैन के वियों - असाइत, अबूईरहमान, बमन्स विलासकार श्रीधरण्यास, भीम, नरसी मेहता, आदि कवियों की रचनाओं का सा तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जा सके। शास्त्री जी ने इस रूम में गुजराती भाषा की सम्पन्नता दिखाने का प्रयास नहीं क्यिा है परन्तु विवेचन साहित्यिक सरसता की कमी, उधरणों कीअधिकता तथा तुलनात्मक अध्ययन कीमियाँ विशेष स हटव्य है। वस्तुत: इस रचना से हिन्दी साथ गुजराती का सम्बन्ध तथा तादात्म्य स्पष्ट किया जा सकता है और दोनों पापाजों का तुलनात्मक अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। यों नेवर कवियों मात्र पर प्रकाश डालने के कारण है अपने इष्टिकोण में एकागी रह गया है। और विस्तार में लिखने का लोभ संवरण नहीं कर सका। (1) गुजराती साहित्य ना स्वामी:
यह पुस्तक मध्यकाल त्या वर्तमान गुजराती साहित्य के स्वमों का विस्तार में परिचय देती है। पुस्तकभी सक पल्य-विभाग ही प्रकाशित हुआ है। गद्य विभाग अभी प्रकाशित होना बाकी है।यह पुस्तक सन् १९५४ में प्रकाश्तिाई। इस पुस्तक के प्रकाशक - मावा गुडियो, महोबा। इसके लेखक प्रोफेसर- मैजुलाल र मजमूदार। रना को कवि में दो दो मैं वं व्या वर्गa ulyो सम्पन्न किया है। प्रथम बन्ड मध्यकालीन काम भयोग पुन्दर परिषय है। इनमें प्रमुख प्रमुख पुस्सा, भाषिक बाना, समस्या प्रदेशिका, राब रामी, प्रबन्ध, सन्द, पवाड़ो, साग, मास्यान,लोक वाडी,
क पि , मारहमासी, सन्येक माम्य, भड्डी बाय, विवालि , काव्य, मी काम्ब, करको हित विा अयन मन्तवानी बा रामा-मामाविका परम्परागत शेषपूर्ण मानिक परिचय दिया गया है। विदीय में प्राचीन पदव स्वरूपों उदारमार्थ महाकाय, डम्ब ब्धि , गळ, का प्रस्ति, देश भक्ति काम, मामा प्रथा पूर्ति काव्य माँ का पुन्दर विवेचन क्यिा है। रमा गुजराती हैपीर अपने बामपूर्ण है। प्रोवर भरम्बार रक्षा को पाशामिक बनाये का प्रवास या लिपीरातील मान्यों का समावेश इस