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इसी प्रकार वे ब्रज भाषा की उत्पत्ति भी आमीरी अपश से मानते हैं ऐसा प्राचीन व्याकरणों का मत है। साथ ही हेमचन्द्र की अपश को औरसेनी कहने वालों पर शास्त्रीजी ने बड़ा रोष प्रकट किया है। डा. शिव प्रसाद सिंह ने शास्त्री जी के ती पर विस्तार से विचार करते हुए उनो स्वोव्याघात दोष से पीड़ित कहा है।' जो बहुत अंश तक भंगत भी है। इस प्रकार रचना में भामा बन्य और तत्वान्वेषण तथा त्यास्थान आदि बातों की दृष्टि से संगीतियां अवश्य है। परन्तु फिर भी जूनी गुजराती अथवा प्राचीन राजस्थानी की 1वीं पन्द्रावी ताब्दी की रचनाओं का प्रारम्भिक अध्ययन करने में यह पुस्तक बड़ी उपयोगी है। (४) प्राचीन गुजराती गद्य संदर्भ:
श्री मुनि जिन विजय जी इवारा सम्पावित यहाद आदिकाल के हिन्दी जैन गद्य साहित्य के क्षेत्र में अत्यन्त मौलिक व्यों का प्रकाशन करती है। रमा मा मत मात्वपूर्ण है तथा जेटी छोटी कहानियों और क्यानों के प्राचीन उइधरनों के इवारा विद्वान सम्पादक ने हिन्दी साहित्य के प्राचीन गड्य साहित्य की सम्पन्नता का परिचय दिया है। भूमि जी की याति प्राचीनतम साहित्य लिए मीलसम्म का कार्य करती है। (५) विपरित (पाग -10
गुजरात विद्या समा अहमदाबाद से सम्बा प्रकाशित यह सिरवीं वीं पादी प्रमुख प्रमुख देवी भाग अजैन गुजराती कवियों का सामान्या: मा परिचय देती है। इसके पश्री शास्त्री रमाकार में इसके दोनों भागों का कलम की रक्षा है की को बड़ी उपयोगिता यह
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पापीर मा नान माप जोर-पोकोकासिक पेदमा मध्यदेश मौ बापीर असावी बाबी या पापा। उतरी मावी जैम गुर्जर प्रदेशनी मौरिहती माथी पुनराठी बरी बाबी। देष- भाषा कवियों- उपदिपाव..८, श्री के०काशास्त्री। १- पुरवाया और बाल्मि-ग. शिव प्रसाद सिंह अध्याका
हिन्दी बार TET बारामती, १४ा