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आदिकाल की इन हिन्दी जैन रचनाओं में के शिल्प सम्बन्धी कई रचनाएं मिलती है परन्तु प्रबन्ध सजक रचनाएँ बहुत ही कम संख्या में मिलती है। अद्यावधि इस दिशा में सिर्फ तीन ही रचनाएं उपलब्ध हो सकी है जिनमें
(.) त्रिभुवन दीपक प्रधनुध ( सुदन मेठजील प्रबन्ध
(6) परत बाहुनही प्रबन्ध प्रमुख है। त्रितन पर प्रबंध इस परंपरा की महत्वपूर्ण कही है। यह रबमा मयावधि उपलब्ध लामम ममी रचनाओं मौलिक तथा अतिनुतन है। परतबाहुबली प्रबंध की प्रति प्राध्य है। इतिहास प्रथों तथा प्राप्त टिप्पणियों के आधार पर आदि के धरनों दुबारा ही हम कृषि की माग कापारिचय प्राप्त कर सकते है।
प्रबंधक कृति (त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध एक वृहत रक्षा )जिसमें कवि का महा काव्यत्य, विवादानिकता. आचार्य-जीवन-बारिल आदि धमी का वर्णन निखर उठा है। यो प्रबन्ध हामान्य बत्वों का निरीक्षण करने पर लगभग सभी सत्वों का इस रचना में हमें सम्मानित मिलता है।
त्रिभुवन दीपक प्रबंध के रचयिता किसी जयवर मूरि सूरि जी अपने समय के प्रतिष्ठित कवियों के थे। संस्कृत और प्रात मी कवि की प्रतिमा असाधारणसी। कविने और
प्राईबहिर हि मोहन्दसूरिाि अंचल
म पट्टर की पत्नी प्राप्त करने के बाद करियर में वि. RHIT मगर स्कृ न विवामि की रमा वि में स्वयं अपना परिणय दिया है। प्रकृया और
१- वैशिष नाब प्रबनाता (२) मिनदीपकप्रपाकामालक
भगवान माधी - -पुरात्व दिर जयपुर प्रहपुरविड - पूर्वर कवियोःमोहनलाह देखाईभाग प्र . -२| ४. कमियरधीमान रिः श्री बार नापि वा
विषय मला विमा पीरोष रियापषियका : पिपुवनदीपकप्रबंध-पु.॥