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प्राकृत साहित्य में सूरि जी की सेवाएं अधिक है। कवि का महाकवित्व उन्हीं प्रथों के आधार पर देखा जा सकता है। कवि के संस्कृत अन्धों में १२ हजार श्लोकों का प्रसिद्ध मन्न्ध उपदेश चिन्तामणि (सं० १॥२) है। इसके पश्वाह कवि ने सं० २ में धम्मिलचरित महाकाव्य और जैन कुमार संभव नामक दो महाकाव्य लिले। जैन कुमार संभव महाकाव्य के अन्तिम श्लोक में तो कवि को घरस्वती इवारा बरदान देने की सूचना भी मिलती है। इन ग्रन्थों अतिरिक्त खंजय तीर्थ इवा विशिका, गिरनार गिरि इवात्रिंशिका महावीर निवा िविका (म संस्कृत) आत्मा व बोधकुलक (प्राकृत) धर्म सर्वस्व आदि कृतियों के अतिरिक्त उपर चिंतामण्यवरि, उपवेश माला व चूरि, पुष्प मालावरि, क्रियागुप्त स्तोत्र, छन्द शेखर नवतत्व कुलक अजित शान्ति स्तवन आदि ग्रन्थ भी कवि ने बनाए है। इस तरह कवि अपने समय के विद्वान व्यक्तित्वों में से थे गह स्पष्ट है।
जयशेखरपारि मे विक्रम में संस्कृत में प्रबोध चिन्तामपि काव्य रचना यह काव्य मक काव्य है। अत: इसी काव्य प्रभावित होकर कवि ने प्रस्तुत कृति त्रिभुवन दीपक प्रबम्थ की रचना की है। त्रिभुवन वीपक प्रबन्ध की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह एक उपक काव्य है। जिसके पकत्व पर हम भागे विचार करेंगे।
कवि का प्रश्न का वा का है कि सम्भवतः उनका बस वीं और १५वीं खानी की स ही दिली मा होगा क्योकि उनके कमाई का बीया समय - met मिलन दीपक प्रबन्ध कर लिटा गया यह बात निश्चय पूर्व की नहीं कहा जा सक्दा पन्त क्योंकि ४९ कवि प्रपोष मियामपि काय लिया और क्योकि प्रमोध किन्बामनि एक प्रकार त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध पी सकत पक
१-बापीवस्तबरविरं विनवीन स्वर्व निर्मित
गों नमार सयब महाका प्रबकाया:- त्रिभुवनदीपक प्रबन्छ
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