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मम्मत्र है कालान्तर में इन स्थान भक्ति प्रधा। बच्चरियों ने ले लिIT हो।परन्तु राजस्थान में होली के आस पास के उल्लास प्रधान गीत, जो टोलियों में गाए जाते है, बच्चरी का सही प्रतिनिधित्व करते है।
चाचरी'
जिनेश्वर सूरि विर बिज चावरी नामक है काव्य उपलब्ध हुआ है।रचना की हस्तलिखित प्रति अभय जैन अन्धालय बीकानेर में पुरक्षित है। पूरी रचग ..दों में लिखी गई है। कृति के रचयिता श्री निश्वर मूरि भरतरगच्छ के थे। पूरी रचना अध्ययन करने पर यह कहा का पता है कि कदि ने समान की रक्षा के लिए लगभग प्रमुख प्रमुख सभी तीर्थंकरों से विनय की है। यह उमा चरी गान मात्र के क्लक विवारण, दलितों की प्रगति तथा भक्तिपूर और अद्यशील व्यक्तियों की रखा हो उस लक्ष्य में कवि ने यह चर्चरी निर्मित की है।
प्रारम्भ मेंही कविने रिभ जिलेश्वर और महावीर के इन 'बनमाणियों का स्मरण करके त सरसाती देवी के पदकमल में प्रणाम करके मस्ति पूर्वक नैमिनाय और जय की महिमा गाई है।
मगति करवि पड रिसह शिष, वीरह वलण ममे वि इन चालित पाणि भाउ धरि हामि पनि अपरेवि परसह सामिमि सबकम मध्यमगति पणमे वि
उचिस नेमि रिसइ, पण मिस अंबामवि प्रार्थना और वंदना कवि प्रारम्प से लेकर तक एक सकती और तीर्थंकर
और प्रदेशों की महिमा का गुणगान क्खा है और परम श्रधा से काव्यांजली वारा नैमिजिनेन्द्र की प्रार्थना ।
1- रचना अपय जैनापुरक्षित है देसिए हस्तलिखित प्रति पत्र २३१-२॥