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सम्भव है कालान्तर में इनका स्थान भक्ति मधा चच्चरियों ने ले लिए हो। परन्तु राजन में होली के आस पास के उल्लास प्रधान गीत, जो टोलियों में गाए जाते हैं, बच्चरी का सही प्रतिनिधित्व करते है।
बावरी
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जिनेश्वर सूरि विरचित चावरी नामक ग्रह काव्य उपलब्ध हुआ है। रचना की हस्तलिखित प्रति अभय जैन प्रन्थालय बीकानेर में सुरक्षित है। पूरी रचना ३० द में लिखी गई है। कृति के रचयिता श्री निश्वर सूरि सरतरगच्छ के थे। पूरी रचना अध्ययन करने पर यह कहा जाता है कि दिने समान की रक्षा के लिए लगभग प्रमुख प्रमुख सभी तीर्थंकरों से विनय की है। यह उबरी गान पार के क्लष विवारण, दलितों की प्रगति तथा भक्तिपूर्ण और अशील व्यक्तियों की रखा हो उस लक्ष्य से कवि ने यह चर्चरी निर्मित की है।
प्रारम्भ में ही कवि ने रिप जिवेश्वर और महावीर के इन 'जनमणियों का स्मरण करके व सरस्वती देवी के पथकमल में प्रणाम करके भक्ति पूर्वक नेमिनाथ और जय की महिमा गाई है:
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भगति करवि पडु रिवह जिन, वीरह चलनवि
चालित भषि भाउ धरि इषि पनि सुमरे वि aces a कमल मध्य भगति पणमे वि
उस नेमि सेतु रिसडु, पन मिस गंगापवि
प्रार्थना और वंदना में कवि प्रारम्भ से लेकर तक एक एक तीर्थ और तीर्थंकर और प्रदेशों की महिमा का गुणगान करता है और परम श्रद्धा से काव्यांजली द्वारा नेमिजिनेन्द्र की प्रार्थना करता है।
१- रचना अमय जैन ग्रन्था में सुरक्षित है देखिए हस्तलिखित प्रति पत्र २३१-२३२ |