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संघ वर्णन जैन कवियों के काव्य का प्रमुख विषय रहा है। कवि ने तीर्थ समय गिरनार की वनस्पति का उल्लेखनीय वर्णन किया है। कुछ अंश
नीमहपाणिउ सलहलइ वानर कर चुकार कोइल मदद मुहाव तहि ढुंगरि गिरिनारि 5 मई दिदिठी पावडी उंच दिदा चटाउ
तळ धमिठ आम दियउ ला सिवपुरिगाउ (-1) रचना दोहा छंदों में लिखी है कवि ने कुल १८ छंदों में इसे समाप्त किया है।मिरिनार का कुछ सरस वर्णन भाषा की सरलता तथा अनुप्रासात्मिकता की दृष्टि में उल्लेखनीय है:
डियढ़ा बंघउ चे बहता अजिति बडेवे पापिउ पीढ़गईबबइ इजलंजलि देने गिरिवाई मोडिया पाम थाहर न लहति कडिनोडइ कडि धवकी डियड सोसह जंत गव न धंधलि थलिलया लपत्ती पाप गावकि लर्जी बिंदिया हियडा अगवान इंगरडा भयो फरि करि लगाउ सीवशिवार
सम पूर्व मम देण्डी पुति स्विट पसार' इस प्रकार रचना के कुछ स्थल महत्वपूर्ण है। वरी गीत महापुलों की प्रशस्ति में भी मिलते हैं। जैसे सोममूर्तिकृत जिन प्रबोधहि बरी धनु रबरी आदि। जन परियों में पडापुत्रों के साप के प्रशस्त होने के लिए शुक्मान किया गया है। काव्य की दृष्टि से इनका साधारण महत्व है। धन्न परी और जिनप्रबोध थरि बबरी बोनों रमा बामणीय मंडार बैसलमेर झा की है तथा अप्रकाशित है। होती संबंधी बम्बारियों उपलब रमनानों में अभी तक नहीं उपलब्ध हुई । बाव
१- वही...t-