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१. यह पक गीत विशेष है जो उल्लास प्रधान वषों की अनुभूति है।
यह निम्न वर्ग की गायक टोलियों और उनके गीतों के लिए भी प्रयुक्त है। ताली बजाकर विशेष ध्वनि उत्पन्न करके वाले वाइय को भी चर्चरी कहते है। चर्चरी एक प्रकार का गान विशेष है जिसमें मृत्य ताल समन्वित फागुन की वासती सुषमा का समावेश होता है। प्रानन्द प्रधान मनमोहक नगर के स्थानों पर उत्पन्न होने वाली ची ध्वनि। वरत में गाया जाने वाला विशुध वसंत गीत। मंगल पाँ पर आनंदोत्पत्ति करने वाला मनोहारो गान।
चर्चरी एक प्रकार का बैल विशेष होता है। ५- एक ऐसा भाषा निबध मान जो नृत्य विशेष के साथ गाया जाता है। ___ यह एक प्रकार कान्द विशेष है जो विभिन्न अन्धों में शास्त्रीय छन्द के
ज्य में प्रयुक्त हुआ है।
यह एक लोक गोत का प्रकार विशेष था। १२. चर्चरी एक प्रकार का राग धा निसको परवर्ती साहित्य में चर्चरी राग नाम
मै अपिहित किया गया। तुलसीदास जी ने भी वर्वरी राग को अपनाया था।
इस प्रकार वर्चरी के शिल्प पर विचार किया जा सकता है।वस्तुतः डा. हजारी प्रसाद पी दिववेदी के सबों में चरी में केवल गान का सही नहीं लिया गया है। आध्यात्मिक उपदेश में चर्चरी शोक प्रिय गान के प्रिय विषय भंगार रस का आभास देने का भी प्रयत्न है। बीजक में यह आभास हो जाता है कि चाचर मात्रा समय है फिर बीज में दो पद बाबर के दोनों के छक अलग अलग है इससे भी मुक्ति होता है कि इसके लिए कोई एक ही नियत नहीं था।
1. जनपद- वर्व, अंक ३.५-८ देखिएमा हजारी प्रसाद दिववेदी का लोक साहित्य
का अध्ययनका 1.बीजक की दारी बाबर ठीक इस पद तो नहीं है पर मिलते जलते व में अवश्य है बान पाता कि पर्चरीबाघर की दीर्घ परंपरा रही होगी ।इन दो बार
शहरोबह प्रभावित हो जाता है कि बीजक जिन काव्यमों का प्रयोग दिया गया है उनकी परंपरा बहत पुरानी है और आलोचना काल में विभिन्न सम्प्रदाय के गुब्बों ने धर्म प्रचार के लिए इन काय माँ को अपनाया धास्वयं बलवी नेचरी राग को अपनाया था. जनपद वर्ष , अंक ३ पु. ५-८1
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