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________________ प्रन्धों के अों का समर्थन किया है। वास्तव में इन वर्षों से यह स्पष्ट होता है कि पर्चरी एक प्रकार का गीत विशेष था जो समूह के रूप गाया जाता था।यह गान इतना अधिक लोक प्रचलित था कि इसे लोकगीत की संज्ञा सरलता से दी जासकती है। वास्तव में इसकी पुष्टि १वीं शताब्दी के जिनदत्त मूरि नामक जैन संत कवि ने लोक प्रचालित बरी और रामक जाति के गीतों का सहारा लिया था, इस तथ्य में होती हैारी उन दिनों जनता में बड़े चाव से गाई जाती रही होगी। श्री हदिव की रत्नावलीतथा बाम भट्ट की रचनाओं से भी चर्चरी पीत की सूचना प्राप्त होती है।वी ताब्दी में सोमाय ने वसन्त काल में वरी गान ना था।' वीं शताब्दी के लक्षण नामक कविने यमुना नदी के पास पास बरे रायबडिय नगर का वर्णन किया है। आगरे के पास स्थित संभवत: इसमें कवि ने नगर के चौराहे का वर्णन किया है जो चर्चर ध्वनि से उइदाम था। श्री अगरचंद नाहटा का मत है कि रास की पाति चंचल एवं नृत्य के साथ विशेषतः उत्सव आदि में गाई जाने वाली रचना को बर्चरी संज्ञा दी गई है। इन सब उल्लेखों के अतिरिक्त परी का एक छद विशेष के म में भी वर्णन मिलता है।यदि वार्षिकोत्त का एक भेद है। मानु के छन्द प्रभाकर में इस पर्वरी का का लापरब र के योग बनता है जिसका न SIS, IISISI, SI, SIS) प्रा में इसका नाम बरी मिलता है। छंदोगासन उम्मबल, सदसून (C) विष प्रिया आदि नाम मिली है। १.चरी-संज्ञा स्त्री (से..प्रमर,भंवरीबावरिहोली गाने का यह पीड -हरिप्रिया छंद-एकवर्गावराचली।विष निवाबीसमानामों का पदवि हिन्दी वृद सापुर-रामचन्द्रवी पु.४०i पर बारबरिय मापनपदबर्षकgot-21 ..जगणावह उत्तर इडित्वडिव बही। देखिए, नागरी प्रचारिणी पत्रिका ५८,४०१०१.०४.१ पर श्री अगरबदमाटा लिमि-प्राचीन भाषाकाव्यों की विविज्ञाप-लेख। -दोन-डेमद (R:-)
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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