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आलोचकों ने इस बरी न्द का शिल्प इस प्रकार माना है- इस लव मैं ०.८ वर्गों पर यति होती है पर पिंगल में ८, १० वर्णों पर यति मानी है।इसका मात्रिक म गीति का छन्द है।
उक्त प्रमाणों के अतिरिक्त प्राचीन प्रपों में उपलब्ध गरी सम्बन्धी और मी जितने प्रमाण त्या विभिन्न अर्थसूचक विवरण एवं वर्णन मिलते है ये इस प्रकार है:. (1) ० ९०९४ में चन्द्रावती में धनेश्वर सूरि इवारा विरचित प्राव मुर सुन्दरी बरिया पन्ध में बच्चरी का उल्लेस देखिए:
तो ओरिसे वसते दिति दिसि पसरत परहुया सबै
वित्वरिय बन्चरी- समुहरिय उज्जाप भूपागो , ५४ इस प्रकार की वसत रितु में दिश दिशा में कोयल के शबद प्रसारित है और विस्तार प्राप्त हुए चरी के रव से मुखरित उद्यान के उस भू भाग में आवाज करते थे)
कीसंत-कामिपि-यम रत-नेउर सैण तरू-नियरो(तमीनियरो) पवण-महूस्व-तुटो गाय इव चारि जत्थ 11, १०८
उदान-बन्वंत्र-बर-बर-मदर्स
परवर कामिनिरपक्व-मुंबmarn (कीड़ा करवी कामिनियों के कार को भूपुर या पाभर के वार से नवयुवतियों का समूह पहन पोन तुष्ट होकर मानों चारी की धादि गान माया पाया था पैगा उमान उइदाम मा गोर से करने वाले अत्यन्त
म मावल या बैग वाला स्वर परत हुए कामिनियों के संघ में मुंबल ऐसी मानन्द की मुबान करने वाले परीके अब्दो माकर्षित हुए कामुकका पटिका बड्दो सहित मारने वाले शब्दों सहित नाच हुए भने बालों वाले (बदली प्रहा • मणमपि इबारा विरक्ति भुपासनाा बारिय में भी बारी कारल्ला स्पष्ट होता है: