SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३४ विरचित मविषयक्ष कहा में भी इस गीत का उल्लेख मिल जाता है।इन उन्लेखों अतिरिक्त और भी कई सूचनाएं वर्चरी अब्द की विभिन्न स्यों में माता स्पष्ट करने को व्यवहृत हुए है। ___ अपर की वर्चरी अन्धों के भायों में चरी शब्द का अर्थ खेल बताया गया है। जिनदत्त सूरि की एक परी में उसके टीकाकार श्री जिनपाल उपाध्याय ने लिखा है कि यह पाया निबंध गान नाच नाच कर पाया जाता है। बर्बरी का प्रथम पद इस प्रकार है: कद अउछ जुक्खिा नवरस भर सहित लन्ध पसिधिहि सुकाहिं सायर जो महिल मुकद माहुति पसंसहि मे तहसुड पुरुह पाहु न पुणइ अवाश्य पापिय मुरगुरूह चर्चरी उब्द की व्युत्पत्ति का अनुमान (प्रा. चन्चर ) चोरट्टा- चौटुं नौंपी किया जा सकता है।(जही लोग इक्ठे होकर नृत्य सहित गान करते हैं आः नृत्य सहित गाने वालों के समूह को बरी कहते हैं) संस्कृत चर्वरी जो कहने में आता है उसका अर्थ है हाथ की बाली की आधार, और इसी कारण उसका संभवतः या नाम पड़ा है। संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुम में परीकई मुक्त हुए है। पात्रमाणको में चरी ओक प्राचीन अर्थ स्पष्ट होने की हिन्दी भव बागर ने भी इन्हीं ..देखिय अपच काव्यत्रयी- श्री पी.डी. बहाल- प्रस्तावना भामा स्कृत स्वार्थ कौस्तुम-संग्राहक इवारका प्रसाद मा बबी बरिका-स्त्री.गीत विशेष बाल देना बरी-पंडितों का पाठ उत्सव के समय का डेल उत्सव का उल्लास -उत्स्वपापसी..पराले बाला - देखिए पासवद मानो - मोबिन्द बाग मेठ कृत-पू. १९७॥ बच्च-4(वर्ष) समालम्पन, चयन "गैरह का शरीर में उपलय बब्बर (वरपरकीया,बौरास्तावीक बबरिया बानिरिकामत्य विशेष (रमा) बच्चरी वी.वरीमीत विशेष एक प्रकार का मान-वितरिय बन्चरीर व (ब) उचापपाने , ) (ब) पारमिय बबरीगीवा सपा ५५) माने वाले रोकी,माने वालों का (क)पोमवण मासेव निगवास विचित्रवेखाउनबर चचरीकीय चचरी बहाथ चचरीएसमान परिब्बई ( R) (कमन्द विशेष (पिंग) बाब कीवाली की आवाज।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy