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इस प्रकार प्राचीनकाल में बरी का स्वस्य जिस प्रकार का गीतिशिल्प लिए था उसकी प्राचीनता और बबरी- चारि इस नाम की सार्थकता के प्रमाण प्राकृत अपप्रेश पाका में बच्चरी-बारि और संस्कृत भाषा में चर्चरी शादों आदि के स्म में मिल जाते है। ये नाम अत्यन्त प्रसिद्धि प्राप्त गीत, नृत्यपूर्वक गान कीड़ा गुदना दि पद्धति की पाति प्राचीन है। महाकवि का लिबास ने विक्रम उर्वशी के चौथै अंक में बहुत से चर्चरी पदयों की रचना अपप्रंश पाषा में की। हरिमा सूर ने मी समरादित्य कथा के आदि में दाविण्य किह ऐसे उद्योतन आचार्य ने मलयाला क्था की आदि में जालंगाचार्य ने चतुष्पंवा पमहापुरुष चरितमों सर्व श्री हर्ष ने रत्नावली नाटिकाके प्रारम्भ में और भी अन्य कइयों ने बरी का वर्णन किया है। हेमचन्द्राचार्य के पहले के प्राकृत और अपशकताओं ने भी चर्चरी का वर्णन मिया है। यह गीत बहुत ही प्रसिद्ध पीत है।' विक्रम की दसवीं वाइवी में लिखी नपाल
धरि परि मंगलइ पयोसियाई, परि धरि मिहणइ परि ओम आई घरिघरि तोरई पसारियाई.घरिघरिसर्यमई अप्पाहिया धरि धरि बर्चदन हण्डय दिन्न, महदयरगयन्दवणय पहाम्न धरिपरि सरपरई पिंजरीउ मोहति व्यतरमंजरीउ चरिपरि बच्चरि से उकसाई धरि परि अंदोलय सोहा धरि धरि गवत्था एकता सोहे, धरि धरि आधषि महाजीसोड
घटता- रिअरिस मंगलकास किय.वरिपरि घर वय अभयारिय धरि परि सिंगार बेतु परिपि नारिमि पर जीवाशी उत्थरिवि
(पवियतका-८-१) पर पर मंगल का प्रयोग थापर पर बर बधू की जोड़ी परितुष्ट थी पर घरोरण बीजेपर पर मनुधावहित नाचबरपरदन का दिन होता थाचंबल छीटेंबरखेडदान होने वाले दवा से फूल है ।
स्वसडित विवररहने वाली माता की पचरी ओषांपाठी थी घर पर बर्चरी कौतुहल। परपर डोलेशातर पुलोरोला मावे घर पर बस्त्र और आभूषणों की घोषाएकबीरापरपर महान धरके भोष करे पर परम रंजित मनबाहीविया वसतिदेवबीबी घर पर मंगल कलश लिए हुए वरपर देवता पारित वीर पर पर अंगार वेश धारण करती हुमी उत्तम वतियों ने नाबबारम्ब किए
- अविसरत हा नपालकृत (८-९)