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एवं गुणा हिराम य पबते वसन्त समय सो सेष कुमारी किलानिमित्त मेव विशेसज्जनेवण संगो परियषणं पयट्टो अमरनन्दर्ण उवाण। दिठोय---- पबजमाणे बसन्त बच्चरी रेण नच्च भाषी किंकरगति परावणमोविय तियसकुमार परियरित्रो वैवरामोक्ति
एवं गुणाभिराम र प्रवृत्ते वसन्त समये सनकुमारः कीड़ा निमित्त मेक विशेषोज्जवल नेपयन संगतः परिजनेन प्रवृत्ती अमरनन्दर अयानम् इष्ट शव--- प्रवाइय मानेन बसन्त पर्चरी पूर्णी नृत्य मिः किंकरमणे ऐरावबगत इन त्रिकुमार परिकरितो देवराज इति।
(इस प्रकार के गुणों सुन्दर वाव समय के आने पर वे ऐनकुमार कीड़ा के लिए ही विशेष उम्मबल नेपथ्यबाले परिजनों सहित बमरनंदन उद्यान में प्रवृत्त हुए और उन्होंने देखा (क्या माने )वसन्त की चर्चरी गायक टोलियों के बजते हुए पूर्व वाद्यों पर नाचते हुए किंकरगण के साथ ऐरावत हाथी पर बैठा हुआ निदर अर्थात देव के कुमारों के परिकर वाला देवराज अथात इन्द्र होय ऐसा)'
इस प्रकार इस विवेचन ढीव उधरम में री कार्य सुन्दर बाइबयान करके उसे मधुर निरवियर कैनवाला कहा गया है।तिन या चतुर्थ उद्धरण चरी मे गन्ध गान बबाबा ने टोलियां नो मन्च में वरी प्रस्तुत करती है, जिनके साथ सूर्य आदि बाय बाय बात है। पर ये टोलिया किर मे निम्नस्थ वर्ष की होती थी।
बरी कधी मन्यनमाप जो उत्कालीन सहायक ग्रन्थों में उपलब्ध हो सके गले में इस प्रकार इन उल्लेखों में गरी सम्बन्धी सों में भी परिवर्तन भी मिले। वरी ग बरा गई एक प्रकार का गीत विशेष श्री
बन्द्र वा अभियान विद्याम िलिखने :- माल्या करी वर्मी समे
१- मराइच कहा: प्रो. जेकोबी, पृ. - अभिधान चिंतामणि (२-100) नवाचार्य।