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जो बास बसन्तके समय में बड़ी रहती है और चौक में वाद्य बाती है, नाचती है.पोष करती है और लोगों का अनुरंजन करती है।इन उल्लेखों के प्राचीनकाल में अपिहित शिल्प पर प्रकार पड़ता है। ये उल्लेख अत्यन्त महत्वपूर्ण है जो इस प्रकार है:- भगवया पषित सुष, रत्व वैवान्तर जन्मै पत्ते प्रथम महसवे निगया
विचित वेवास नगर बन्दरीस तम जम बढे परिगएम वसंतकीस मामबन्न दिन समासन्नवारिणी बत्य सोहग बच्चरितिक्णिय अन्नाव बोन बाइकुलाइ गादिपक कई नीय रबरी अडाप बच्चरीए समासन्न परिव्ययइ तित क्यारिय सा बत्य सोगा. इंस्टाया
भगवता पवित-अप, अत्र वान्तर जन्मनि प्रवृत्ति मदन महोत्सव निर्गता विचित्रवेवास नगर चत्वरी (चन्चरी) इतरू जनवद परिगोन बहुजन प्रशंसनीया वसंत क्रीडामनुभवता दृष्ट्वा समासन्न चारिणी वस्त्र शोधक चचरी इति दृष्ट्वा च अज्ञान दोन जाति कुला दिगवितैन बंधनीय गरी अमावस्या (चर्चयों) मान्न परिणति इति दर्षिता वस्त्र शोधका) भगवान ने कहा- सुनी। ही वान्तर उन्म मद-महोत्सव कराए विचित्र वे बाली नगर की गायक टोलियां बाहर निकलकर बन जब समूहों के भ्याई व कीड़ा देशकर पास टी ई भाग लेती हुई शोपियों की मायक टोली को देखकर, बात दोष में, गातिल मादि से मर्यवाणी
इसे देखकर कहा- • क लिय या नीव वरी मायक होती हमारी टोती। पास बैठकर किरती है. इस बानों से पोषियों का अपमान किया)'
.- मराइब कहाः मोहन कोबी पापित पृ. ५३॥