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________________ ५२५ सिर पर करोत रखना, कोल्हू में पेरना, तप्त स्त्री पुतलियों से संभोग कथाना कुंभी पाक में डाल गगन में धूलकी भाति उहाल कर त्रिसूलों की धरती पर गिराना, आग में जलाना, खंड बढकरना, ढंडा पानी मागने पर तप्त क्थीर पिलाना, गर्म खेल के कड़ाह में उबालना आदि वर्णन कितने सजीव और यथार्थ में परन्तु इन वर्णनों के वर्णन क्रम में वही परंपराज्य विवादिता है। कवि ने इन वनों के अतिरिक्त मालंकारिक शैली में दर्शन के सिद्धान्तों पर पी प्रकाश डाला है। माता पिता भाई, बेटा कोई किसी का साथ नहीं देते। तुम्मा विनाश का कारण है। इन्द्रियों की प्यास मनुष्य को प्रमण करती है।इगल की पाति मनुष्य भ्रमण करता है। मह संसार देश इखों की शान है त: मनुश्य को सहकर्म जिनवर ध्यान, समक्ति का पालन कर जन्म को सफल बनाना चाहिए। बारह ब्रत, अष्ट कर्म, सम्यक् दर्शन, चरबीस जिनेश्वर का ध्यान करना चाहिए ताकि ४ लाख योनियों में मनुष्य कब जाय। भाषा की सरलता वर्णन का प्रवाह और दार्शनिक सिद्धान्तों का कम भाषा में प्रचार करने के लिए इस बना की उपयोगिता दृष्टव्य है। भाषा सरल हिन्दी है जिस पर यत्र तत्र पुरानी राजस्थानी और सूनी गुजराती के गड्दों का प्रभाव परिलक्षित होता है।कुट दार्शनिक सिद्धान्तों का विवेचन देखिए:र पुदमल तीन अन्या गाणि, 'फिरवाई नीति न कीधी भाषि अनेक बार जीवि कीची काग, ना परमि पूरिया बऊद राज गर्नश एबमल नउ भाषिउ, हता पामिन बीतराग देत एकाना है बाराषई मिड, पखडा मेरा सूटई बिमइ (४९-५०) पक राज गरि विस्तारि, सिद्ध शिला याकरि अनेक मु सिय विन, मुबह पार न लहति भाग बी सरिता काय, हे कीपर वीतराम कबरा नी मोडी लि, गिया इथि सिदिशा पैलाके चरबीचमा विसर देव, विहिं बारवा आपिठ पेठ पोय मामि इन परिवार, मवि बीगा ये श्रावक थाई
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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